वर्ण व्यवस्था
- वर्ण का तात्पर्य है-‘ ग्रहण करना’ या ‘धारण करना ‘।
- ‘वर्ण’ शब्द संस्कृत से लिया गया है।
- अपनी जन्मजात रुचियो व क्षमताओं के आधार पर व्यक्ति जिस कर्म-क्षेत्र को स्वीकार करता ( वरण करना) है, वही उसका वर्ण हो जाता है,अर्थात इस व्यवस्था को ही वर्ण व्यवस्था कहते हैं।
- प्राचीन काल में तथा हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार समाज में निर्धारित वर्ण- 4
वर्णक्रम आधारित
1.ब्राह्मण
2.क्षत्रिय
3.वैश्य
4.शूद्र
वर्ण व्यवस्था का विभाजन
ऋग्वेदिक काल में वर्ण व्यवस्था मुख्यता: कर्म आधारित थी,लेकिन उत्तर वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था जन्म आधारित होकर पैतृक हो गई थी…… इस आधार पर इसे 4 प्रकार से विभाजित किया गया
वर्ण विभाजन
1.ब्राह्मण
- धार्मिक कर्मकांड कार्यों का संपादन करना
- सर्वोपरि समझा जाता था
[ अध्ययन अध्यापन, यश ,याजन,प्रतिग्रह (दान लेना) जैसे- 6 कर्तव्य
2.क्षत्रिय
- ब्राह्मण पश्चात स्थान
- प्रजा की रक्षा ,सुरक्षा हेतु बलिदान प्रमुख कर्तव्य
3.वैश्य
- व्यवसाय व कृषक ,साहूकार
- आर्थिक कार्यों का उत्तरदायित्व
4.शूद्र
- उत्तर वैदिक कालीन निम्नतम वर्ण
- उपरोक्त तीनों वर्णों की सेवा कार्य सौंपा गया
- स्थिति शोचनीय दयनीय रही,सर्वाधिक शोषित वर्ण
वर्ण व्यवस्था की विशेषताएं:-
- कर्म की प्रधानता
- संस्कार शुद्धि पर आधारित
- पुरुषार्थ प्राप्ति का साधन
- लचीलापन एवं गतय्यात्मकता
- अन्योन्याश्रित
- सामाजिक न्याय पर आधारित •नैसर्गिक एवं मनोवैज्ञानिक
वर्ण व्यवस्था का महत्व (सामाजिक आधार पर)
- सभी वर्णों की सभी आवश्यकताओं की समन्वय से पूर्ति
- संस्कृति की सुरक्षा
- भारतीय समाज का अंग वर्ण व्यवस्था
- समाज में आपसी संघर्ष की संभावना नहीं
- श्रम विभाजन संभव हो पाता था
वर्ण व्यवस्था की त्रुटियां या दोष
- उच्च, निम्न, श्रेष्ठता का भाव का उत्पन्न होना
- समाज में आस्पर्शयता,असमानता शोषण का उदय
- प्रजातंत्र के स्वस्थ विकास में बाधा •प्राकृतिक संसाधनों स्रोतों पर एक वर्ण विशेष का एकाधिकार
- समाज का एक बहुत बड़े भाग को विकास के समुचित अवसर ना मिलपाना
- राष्ट्रीय एकता के मार्ग को बाधित करना
- सामुदायिक भावना का संकुचन आदि
जाति व्यवस्था
- ‘जाति ‘शब्द स्पेन भाषा के ‘कस्टा’ शब्द से बना है।
- अर्थ- नस्ल कुल या वंश परंपरा से प्राप्त गुणों की जटिलता से है।
- परिभाषा-” वर्ण व्यवस्था वह विकृत स्वरूप जिसके अंतर्गत व्यक्ति की सदस्यता और स्थिति कर्म के स्थान पर जन्म से निर्धारित की जाती है और खानपान, विवाह, व्यवसाय तथा सामाजिक संपर्क पर कुछ निश्चित प्रतिबंध भी लग जाते हैं।”
जाति व्यवस्था एवं वर्ण व्यवस्था में अंतर
क्र. | जाति व्यवस्था | वर्ण व्यवस्था |
1. | जाति जन्म मूलक है। | वर्ण व्यवस्था कर्म मूलक है। |
2. | जाति का निर्धारण जन्म के आधार पर होता है। | वर्ण का निर्धारण गुण एवं कर्तव्यों के आधार पर होता है। |
3. | जाति व्यवस्था की प्रकृति कठोर होती है। | वर्ण व्यवस्था में लचीलापन का समन्वय होता है। |
4. | जाति व्यवस्था के अंतर्गत अनेक उप जातियां पाई जाती है। | वर्ण व्यवस्था में उप वर्ण जैसी कोई संकल्पना नहीं होती। |
5. | जातियों की संख्या अधिक है। | वर्ण केवल चार हैं, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र। |
गांधीजी एवं डॉ भीमराव अंबेडकर के विचारों में जाति व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था संबंधित विचार पूर्णता अलग अलग है उदाहरण स्वरूप गांधीजी जहां वर्ण व्यवस्था के समर्थक थे किंतु जाति व्यवस्था के विरोधी थे, वही अंबेडकर ने जाति व्यवस्था और वर्ण व्यवस्था दोनों का कठोर विरोध किया है।
This article is written by Ms.Priyanka Jatav.