संगम काल
प्राचीन भारत में संगम काल के समय दक्षिण भारत पर तीन राजवंशों ने शासन किया था, जिनमे से चेर राजवंश, चोल राजवंश और पाण्ड्य राजवंश प्रमुख थे। और, इन तीनो राजवंश का संगम स्थल “तिरुक्काम्पुलियर” था। तथा, इसी Sangam Period में दक्षिण भारत में तमिल कवियों का भी समागम हुआ था।
- दक्षिण भारत में कृष्णा और तुगंभद्रा नदियों के दक्षिण में 3 BC से 3 AD के बीच के काल को संगम काल कहा जाता है।
- इसका नाम उन संगम सभाओं पर रखा गया है, जो पांडेय राजशाही के संरक्षण में मदुरई में संपन्न हुई।
- इस काल में कई विद्वानों का समूह इकट्ठा हुआ और उन्होंने मानवीय हितोनुरुप कई साहित्यों की रचना की। यह साहित्यिक कृतियां तमिल ग्रंथों में आरंभिक कार्य है।
- तमिल किंवदंतियों के अनुसार यह माना जाता है कि 3-प्रमुख तमिल कवियों की संगम सभाएं हुई है, जिनका प्रसिद्ध नाम मुच्छागनम है।
- पहली सभा मदुरई में हुई जिन्हें देवता और ऋषियों ने अपनी उपस्थिति से महान बनाया। इसका कोई भी साहित्यिक कार्य मौजूद नहीं है सभी नष्ट हो गए।
- दूसरा संगम कापाटापुरम में हुआ और केवल तोलाकाप्पियम ग्रंथ ही बच पाया।
- तीसरे संगम सभा आयोजन भी मदुरई में हुआ और कुछ महत्वपूर्ण तमिल ग्रंथ अस्तित्व में है, और वे तमिल इतिहास के ज्ञान महत्वपूर्ण स्त्रोत है।
चेर राजवंश
- चेर राजवंश का राजधानी वज्जि था।
- चेर ने तमिलनाडु का कोंगु क्षेत्र और केरल के मध्य और उत्तरी भाग पर शासन किया था।
- चेर राजवंश के नियंत्रण में पश्चिमी तट, मुसिरी और टोंडी के बंदरगाह थे।
- इस राजवंश के सबसे महान राजा थे शेनगुटटवन जिन्हे (Red Chera) ‘लाल चेर’ के नाम से भी जाना जाता है और,शेनगुटटवन के शासन काल में ही पत्नी पूजा का प्रारम्भ किया गया था, जिसे कण्णगी पूजा भी कहा गया है।
- चेर साम्राज्य के साथ रोमन साम्राज्य का भी अच्छी व्यापारिक संबंध था, जिससे, चेर राजा व्यापार में काफी उन्नति करते थे।
- इस राजवंश का राजा शेनगुटटवन पहले भारतीय राजा थे, जिन्होंने, दक्षिण भारत से आपने दूत को चीन में भेजा था।
- इस साम्राज्य का प्रतीक चिह्न “धनुष-बाण” था, तथा, यह साम्राज्य के तीन पीढ़ियों का जानकारी ईसा की पहली शताब्दी में पुगलुर शिलालेख के द्वारा पाई गई है।
चोल वंश
- चेर राजवंश वाद चोल राजवंश आए।
- चोल राजवंश का राजधानी था उरैयूर, जो कपास के व्यापार के लिए प्रसिद्ध था;और, यह तिरुचिरापल्ली के पास स्थित था।
- चोलों के शासनकाल में मुख्य क्षेत्र कावेरी डेल्टा था, जिसे बाद में ‘चोलमण्डलम’ के नाम से भी जाना जाता था।
- यह साम्राज्य तमिलनाडु का मध्य और उत्तरी भाग का क्षेत्र को नियन्त्रण करता था।
- चोल साम्राज्य के सूती कपड़े का मुख्य व्यापार था, जिससे धन का उपार्जन होता था।
- इस वंश के महान शासक थे करिकाल, जिन्होंने, कावेरीपत्तनम या पुहार नगर की स्थापना की थी, और, अपनी राजधानी उरैयूर से कावेरीपत्तनम में स्थानांतरित किया।
- इस साम्राज्य का प्रतीक चिह्न बाघ था।
- इसके साथ यह साम्राज्य के पास एक कुशल नौ-सेना भी था।
- इसके अतिरिक्त, संगमकाल के साहित्य में विभिन्न कविताओं में वेण्णि के युद्ध का उल्लेख मिलता है, जिसमें करिकाल ने पाण्ड्य तथा चेर सहित ग्यारह राजाओं को पराजित किया था।
- करिकाल चोल राजाओं में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शासक था, और, करिकाल ने अपने शासनकाल में व्यापार और वाणिज्य क्षेत्र को भी संपन्न बनाया था। इसके इलावा कावेरी नदी के किनारे 160 किमी. लम्बा बांध भी बनवाया था, और, पत्तिनप्पालै में उनके जीवनी तथा सैन्य अधिग्रहण को भी दर्शाया गया है।
पाण्ड्य राजवंश
- चोल राजवंश के प्रश्चात पाण्ड्य राजवंश आया।
- पांडे का उल्लेख सबसे पहले मेगस्थनीज ने किया था, जिन्होंने कहा था कि पाण्ड्य के राज्य मोती के लिए प्रसिद्ध था।
- पाण्ड्य राजवंश का राज्य भारतीय प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिण और दक्षिण-पूर्वी भाग में था, और, पाण्ड्यों ने मदुरै से शासन किया था।
- पाण्ड्य के प्राथमिक राजधानी कोरकई थी, जो बंगाल की खाड़ी थम्परपराणी संगम के पास स्थित थी।
- इसके साथ, पाण्ड्योण के शासनकाल में तीन संगमो का भी आयोजित हुआ था, और, इसी तीन संगमो का संरक्षण पाण्ड्य राजाओं द्वारा प्रदान किया गया था।
- इसके इलावा, पाण्ड्य राज्य धनी और समृद्धशाली था।
- पाण्ड्य राजाओं ने नियमित शासन करते हुए अपना वर्चस्त वनाये रक्खा था।
- यह साम्राज्य का प्रतीक चिह्न ‘मछली’ थी।
- इस राज्य में ब्राह्मणों का काफी प्रभाव था।
- ईसा के शुरूआती शताब्दियों में पाण्ड्य राजा वैदिक यज्ञ भी किया करते थे।
- समाज में विधवाओं के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था।
- नल्लिवकोडन संगम युग का अंतिम ज्ञात पाण्ड्य शासक था।
- 300 ईस्वी पूर्व से 600 ईस्वी पूर्व के बीच कालभ्रस ने तमिल देश पर कब्ज़ा कर लिया था।
- जिसके साथ, Sangam period धीरे-धीरे पतन की तरफ अग्रसर हो गया था, और, इतिहासकारों ने संगमकाल के पहले अवधि को ‘अंतरिम युग’ या ‘अंधकार युग’ कहा है।
संगम कालीन साहित्य
- संगम साहित्य में दक्षिण भारत का एक प्राचीन इतिहास है।
- संगमकाल को तीसरी और चौथी शताब्दी की अवधि के रूप में भी जाना जाता है, तथा इस शताब्दी में तमिल साहित्य का भी अच्छा प्रभाव था; इसलिए इस अवधि को संगम के रूप भी में जाना जाता है। संगम तमिल कवियों का समागम था।
- यह किसी प्रधान या राजाओं के संरक्षण में ही आयोजित किया जाता था।
- 8 वीं सदी ई. में प्राचीन दक्षिण भारत में तीन संगमों का आयोजन किया गया था।
- इन तीन संगम के नाम थे, प्रमुख संगम, मध्य संगम और अंतिम संगम, जिसे ‘मुच्चंगम’ (Muchchangam) के नाम से भी जाना जाता था, तथा, इन संगमों को पाण्ड्य राजाओं द्वारा शाही संरक्षण प्रदान किया गया था, हालाँकि, पहला संगम पांड्यों की पुरानी राजधानी दस-मदुरै में आयोजित किया गया था, जिसमे, देवता और महान संत सम्मिलित हुए थे लेकिन, इस संगम का कोई साहित्यिक ग्रन्थ मौजूद नहीं है।
- इसी तरह, द्वितीय संगम कपाटपुरम् में आयोजित किया गया था, जिसका वर्णन तमिल व्याकरण ग्रन्थ ‘तोलकाप्पियम्’ में पाई गई है।
- तृतीय संगम उत्तर मदुरै में आयोजित किया गया था, लेकिन, इस संगम के अधिकांश ग्रंथ नष्ट हो गए थे, जिनमे से कुछ ग्रंथों या महाकाव्यों के रूप में मौजूद है।
संगम कालीन समाज
- संगम काल में सामाजिक जीवन शैली उत्तर भारत की संस्कृति दक्षिण में प्रसार हुआ था।
- संगमकाल में ही सर्वप्रथम तमिल क्षेत्र में ब्राह्मणों का आगमन हुआ था।
समाज के विभिन्न वर्ग
- शासक, ब्राह्मण, वणिक तथा किसान जैसे चार वर्ण थे।
- जिसमे ब्राह्मण को अंडनार, किसान को वेलालर, शासक को अरसर तथा वणिक को वेनिगर कहा गया है।
- संगमकाल में शासक वर्ग और धनी कृषक वर्ग को वैल्लाल जाति के रूप में भी जाना जाता था, और, वैल्लाल के प्रमुख को वेलिर कहा जाता था, तथा, खेतों में काम करने वाले मजदूरों को कडेसियर कहते थे। चोल राज्य में धनी कृषकों को ‘वेल’ तथा ‘आरशु’ की उपाधि दी जाती थी। और, पाण्ड्य राज्य में इन्हें ‘कविदी’ की उपाधि दी गई थी।
महिलाओं की स्थिति
संगमकाल में उच्च सैनिक वर्गों में सती प्रथा का प्रचलन था। इसी काल में अन्तरजातीय विवाह भी प्रचलित था। विधवाओं की जिंदगी सरल नहीं थी ।युद्ध में स्त्रियों को दासी बना लिया जाता था।
शोषित वर्ग दास प्रथा भी प्रचलित था, और इसी अवधि में जाति प्रथा का आधार व्यवसाय था।
संगम काल की अर्थव्यवस्था
मुद्रा अर्थव्यवस्था की अनुपस्थिति :– अधिकांश व्यापार वस्तु-विनिमय के जरिए होता था, किंतु सिक्कों का प्रचलन भी शुरू हो चुका था क्योंकि कई रोमन सिक्के उत्खनन में प्राप्त हुए हैं।
व्यापार वाणिज्य :– संगमकाल में रोम के साथ व्यापार उन्नत अवस्था में था। संगमकाल में पश्चिमी देशों को सूती वस्त्र, रेशम, मोती, मसाला, काली मिर्च और हाथीदांत आदि का निर्यात किया जाता था। जवकि, पुखराज, तांबा, शराब, सिक्के, टीन, छपे हुए वस्त्र और शीशा आदि वस्तुओं को आयात किया जाता था।
नोट :- इसे कावेरी पत्तनम(पुहार) के नाम से भी जाना जाता है।तथा, इसकी स्थापना चोल शासको ने की थी।
पुहार शहर इसलिए महत्त्वपूर्ण था, क्यूंकि कीमती सामान वाले बड़े जहाज़ इस क्षेत्र के बंदरगाह में प्रवेश करते थे। ग्रीको का दक्षिण भारत के साथ व्यापार संबंध काफी अच्छे थे।
कृषि अर्थव्यवस्था और पशुपालन :-कृषि, पशुपालन तथा शिकार जैसे जीविका मुख्य थे ग्रीक भाषा में चावल, अदरक आदि जैसे शब्द को तमिल भाषा से लिए गए थे। इस समय कृषि का विस्तार ऋषि अगस्त्य द्वारा किया गया था।
शिल्प उद्योग – संगमकाल में जहाजों का निर्माण तथा कताई-बुनाई जैसे महत्वपूर्ण उद्योग थे। ‘उरैयूर’ सूती वस्त्र उद्योग का एक महत्वपूर्ण केन्द्र हुआ करता था।
संगम काल की राजनीतिक व्यवस्था
राजा की स्थिति – समस्त अधिकार राजा में अंतर्निहित होता था। संगमकाल में कारवेन, मन्नम और वन्दन जैसे उपाधियाँ राजा एवं देवता को दी गई है।
न्याय व्यवस्था – राजा के न्याय और राजनैतिक कार्यकलाप के लिए सर्वोच्च न्यायालय और राज्यसभा को ‘मनरम’ कहते थे।
सैन्य व्यवस्था – साम्राज्य में राजा के सेना कि जो अग्र टुकड़ी होती थी, उसे ‘तुशी’ कहा जाता था, तथा, सेना की पिछली टुकड़ी को ‘कुले’ कहा जाता था।
इसके इलावा, लड़ाई में मारे गए सैनिकों की याद में जो पाषाण मूर्तियाँ बनाई जातीं थीं। उसे ‘नड्डूकल’ या वीरक्कल कहा जाता था। युद्ध में मारे गए सैनिकों की बन्दी स्त्रियों को दासी बनाकर उनसे मंदिरों में दीपक जलाने का कार्य भी करवाया जाता था।
संगम काल के समय समाज में शिक्षा का प्रचलन प्रबल था।
Note :- शिक्षा को महत्वपूर्ण माना जाता था। यह अवधि काल शिक्षा और साहित्य का समागम था। जहा पे शिक्षक को ‘कणकट्टम’ कहा जाता था। और, शिक्षा पाने वाले को ‘पिल्लै’ कहा जाता था।
इस काल कला, विज्ञान, गणित, व्याकरण, चित्रकला, ज्योतिष, और मूर्तिकला जैसे विषयो पर समुचित ज्ञान प्रदान किया जाता था।
तमिल कवियों के समागम भी इसी संगमकाल में पाया गया था।
राजा के जन्मदिन के अवसर को ‘पेरूनल’ कहा जाता था। संगमकाल में राजा का जो दरबार होता था, उसे ‘नलबै’ कहा जाता था।
संगम काल में धर्म
- तमिल में भगवन विष्णु को ‘तिरुमल’ कहा जाता है, संगम साहित्य से पता चलता है कि दक्षिण भारत में आर्य सभ्यता का विस्तार ऋषि अगस्त्य द्वारा किया गया था।
- संगम युग में दक्षिण भारत में वैदिक धर्म का भी आगमन हुआ था।
- दक्षिण भारत में मुरुगन का उपासना सबसे प्राचीन है।
- प्राचीन में मुरगन का दूसरा नाम वेलन भी था, और,मुर्गा मुरगन का प्रतीक चिन्ह था, वेल या बरछी मुरगन का प्रमुख अस्त्र था।
- इसके इलावा उस समय में किसान भी मेरूडम इंद्र देव की पूजा किया करते थे।
This article is compiled by Sarvesh Nagar (NET/JRF).
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