Mppsc Solved Papers Indian Geography – 2018 Six Markers
Questions
- प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के आधार पर हिमालय की उत्पत्ति को समझाइए ?
- मध्यप्रदेश में कुओं एवं नलकूपों से किन क्षेत्रों में सर्वाधिक सिंचाई होती है और इसके क्या कारण है ?
- जल संरक्षण के पारंपरिक तरीके कौन से हैं, इनसे कौन सी आवश्यकताएं पूरी की जा सकती हैं ?
- आपदा प्रबंधन में राहत एवं पुनर्वास के लिए किए जाने वाले उपायों को बताइए ?
- मध्य प्रदेश में जनसंख्या के क्षेत्रीय प्रतिरूप का वर्णन कीजिए ?
- मध्य प्रदेश में जनजाति क्षेत्रों का उल्लेख करते हुए उनकी प्रमुख समस्याओं का वर्णन कीजिए ?
- भारत के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का वर्णन कीजिए ?
- मध्य प्रदेश के डोलोमाइट खनन क्षेत्रों का वर्णन कीजिए ?
- मध्य प्रदेश के डोलोमाइट खनन क्षेत्रों का वर्णन कीजिए ?
- हिंद महासागर में आई 2004 की सुनामी के कारण और परिणामों का वर्णन कीजिए ?
- मध्य प्रदेश में सोयाबीन उत्पादक क्षेत्रों का वर्णन कीजिए तथा प्रदेश में सोयाबीन फसल विस्तार के कारण क्या है ?
- मध्य प्रदेश में सीमेंट उद्योग के स्थानीयकरण का विस्तृत वर्णन कीजिए ?
- मध्यप्रदेश में मृदा अपरदन क्षेत्रों का वर्णन करते हुए मृदा अपरदन को रोकने के उपाय बताइए ?
- मध्यप्रदेश में जल संसाधनों की समस्याओं का वर्णन कीजिए ?
Model Answers
निम्नलिखित में से कोई 10 प्रश्नों के उत्तर दीजिए (शब्द सीमा 100)
1. प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत के आधार पर हिमालय की उत्पत्ति को समझाइए ?
प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत वलित पर्वतों के निर्माण की सबसे नयी व्याख्या प्रस्तुत करता है। … हिमालय की उत्पत्ति के बारे में भी इस सिद्धांत की यही मान्यता है, इस सिद्धांत का प्रतिपादन हैरी हैस ने किया किंतु इसकी वैज्ञानिक व्याख्या का श्रेय मोर्गन को जाता है।
इस सिद्धांत के अनुसार भूपर्पटी अनेक छोटी-छोटी प्लेट में विभक्त है यह प्लेट 100 किलोमीटर की मोटाई वाले स्थलमंडल (लिथोस्फियर )से निर्मित होती है एवं दुर्बल मंडल ( एस्थेनोस्फीयर) पर तैरती रहती है जो की पूर्णता सीमा (SI,MA) का बना होता है।
इस पर्वतमाला की उत्पत्ति तिब्बत प्लेट (या यूरेशियन प्लेट) और भारतीय प्लेट (दुर्बल मंडल पर प्रवाहमान)के पास आने और टेथीज सागर या भूसन्नति में जमा अवसादों के संपीडन से हुआ है।
इस सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी के सतह से 200 किलोमीटर की गहराई में जाने पर पूरी पृथ्वी पर दृढ़ भूखंड पाया जाता है,
यह दृढ़ भूखंड 7 बड़ी प्लेटो में विभाजित है इन्हीं प्लेटो में से एक भारतीय प्लेट भी है।
ये प्लेटें गतिशील है इस सिद्धांत के अनुसार जब भारतीय प्लेट उत्तर की ओर प्रवाहित होते हुए यूरेशियन प्लेट से टकराई जिसके परिणाम स्वरुप दोनों प्लेट के बीच में स्थित टेथिस सागर में अवसादी मलबे में वलन (मोड़) होने लगा तथा इसके परिणाम स्वरुप हिमालय का निर्माण हुआ|
पहले भारतीय प्लेट और इस पर स्थित भारतीय भूखण्ड गोंडवानालैण्ड नामक विशाल महाद्वीप का हिस्सा था, और अफ्रीका से सटा हुआ था जिसके विभाजन के बाद भारतीय प्लेट की गति के परिणामस्वरूप भारतीय प्रायद्वीपीय पठार का भूखण्ड उत्तर की ओर बढ़ा और तकरीबन 6000 कि॰मी॰ की दूरी तय की। यूरेशियाई और भारतीय प्लेटों के बीच यह टकराव समुद्री प्लेट के निमज्जित हो जाने के बाद यह समुदी-समुद्री टकराव अब महाद्वीपीय-महाद्वीपीय टकराव में बदल गया और (650 लाख वर्ष पूर्व) केन्द्रीय हिमालय की रचना हुई।
बाद में टकराव के कारण हिमालय की तीन श्रेणियों की रचना अलग-अलग काल में हुई जिसका क्रम उत्तर से दक्षिण की ओर है। अर्थात पहले महान हिमालय, फिर मध्य हिमालय और सबसे अंत में शिवालिक की रचना हुई।
2. मध्यप्रदेश में कुओं एवं नलकूपों से किन क्षेत्रों में सर्वाधिक सिंचाई होती है और इसके क्या कारण है ?
मध्यप्रदेश में सर्वाधिक सिंचाई और नलकूपों के माध्यम से की जाती है, जो मुख्यत: मालवा का पठार,बुंदेलखंड का पठार तथा सतपुड़ा व नर्मदा घाटी क्षेत्रों में प्रमुख रूप से प्रचलित है।
प्रदेश में कुओं के माध्यम सर्वाधिक सिंचित जिला मंदसौर (82.2%) तथा नलकूपों से सर्वाधिक सिंचित जिला इंदौर (88.6%)
- मध्य प्रदेश की सर्वाधिक कृषि मालवा क्षेत्र में होती है आधुनिक कृषि फसल में पानी की खपत ज्यादा होती है।
- इंदौर देवास उज्जैन जैसे औद्योगिकीकृत क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति के लिए ट्यूबवेल का सहारा लिया जाता है।
- इस क्षेत्र में नदियों की संख्या बहुत ज्यादा है अत: सामान्य जलस्तर पर पानी निकल आता है।
- लोग पुरानी बाउडियों, तालाबों, नदियों के संरक्षण से ज्यादा सुविधाजनक कुओं व ट्यूबेल को समझते हैं।
- मालवा नर्मदा घाटी क्षेत्रों में सम जलवायु होने के कारण यहां पर जनसंख्या का अधिक केंद्रीकरण हुआ है इसी प्रकार जल का दोहन भी बढ़ा है।
- काली मिट्टी की संरचना कुछ इस प्रकार की होती है कि उस से पानी रिस कर सीधा धरती में चला जाता है प्रवाहित होकर बाहर नहीं जाता इस प्रकार यह कुओं के लिए आदर्श दिशाएं होती हैं।
3. जल संरक्षण के पारंपरिक तरीके कौन से हैं, इनसे कौन सी आवश्यकताएं पूरी की जा सकती हैं ?
भारत में जल संरक्षण एवं उसकी प्रयोग के उदाहरण सिंधु घाटी की सभ्यता से देखने को मिलते हैं धोलावीरा के 16 जलाशय एवं सभी महत्वपूर्ण नगरों के घरों में उपस्थित कुए हमें जल संरक्षण और उसके विविध प्रयोग की झलक देते है।
भारत में कई सारी जल संरक्षण की पद्धतियां समय के साथ विकसित हुई हैं अपनी भौगोलिक एवं जलवायु की विविधता के कारण अलग-अलग जगह अलग-अलग जल संरक्षण पद्धतियां हैं उनमें से कुछ महत्वपूर्ण जल संरक्षण पद्धतियां निम्नलिखित है
1.झाबुआ-पाट पद्धति से किसानों द्वारा पहाड़ियों के जल स्रोतों को मोड़ कर खेतों में सिंचाई की जाती है।
2.राजस्थान के थार मरुस्थल में तालाब बनाने की परम्परा थी। जोधपुर के बालसमुन्द तालाब का निर्माण सन् 1126 में और जैसलमेर के घडीसर तालाब का निर्माण सन् 1335 में हुआ था।
3.लद्दाख, कारगिल, लाहौल और स्पिति के बर्फीले इलाकों में मई से अक्टूबर के महीनों में ग्लेशियरों के पिघलने से मिले पानी को नीचे के इलाके में छोटे-छोटे तालाबों (जिंग) में सिंचाई के लिये जमा किया जाता था।
4.मध्य प्रदेश के बुरहानपुर शहर में सन् 1615 में फारस के भूजल-वेत्ता तब्कुतुल अर्ज ने भूजल स्त्रोतों का अध्ययन कर जलापूर्ति के लिये भूजल एकत्रित करने वाली भूमिगत सुरंगों का निर्माण कराया। गुरूत्वाकर्षण पर आधारित इस प्रणाली।
5.ब्रह्मपुत्र घाटी- के बोडो आदिवासी खास प्रकार के पोखर बनाते थे। इन पोखरों को डांग कहा जाता था। इन पोखरों में जमा बरसाती पानी, धान की सुरक्षात्मक सिंचाई के लिये उपयोग में लाया जाता था।
6.राजस्थान मैं जल संरक्षण की अच्छी खासी परंपरा विकसित है वहां की किलो में कुएं एवं बावडियां सामान्य घरों में जल को स्टोरेज करने के लिए संरचनाएं उपस्थित होती हैं।
7.महाराष्ट्र के थाणे, रत्नागिरी और कुलाबा जिलों में पहले कुओं, तालाबों और झीलों से सिंचाई होती थी।
8.दक्षिण भारत- में अधिकांश पुराने तालाबों का निर्माण मुख्य रूप से लाल मिट्टी वाले इलाकों में किया गया था। लाल मिट्टी में छुई (क्ले) की उपस्थिति के कारण पानी का जमीन में बहुत कम रिसाव होता है।
9.मेघालय – पहाड़ी ढ़ालानों पर पहाड़ी स्त्रोतों के पानी को बांस के पाइपों की मदद से सिंचाई।
पूरे देश में पुरानी जल संरक्षण प्रणालियों के उदाहरणों की कमी नहीं है। देश को जल संकट की चुनौतियों का सामना करने के लिए इन्हें रिवाइव करना होगा ।
उपरोक्त सभी जल संरक्षण की प्रणालियां जल की दैनिक आवश्यकताएं जैसे पीने ,नहाने ,कपड़े धोने व कृषि में उपयोग तथा उद्योगों के लिए भी इनका प्रयोग किया जाता है।
4. आपदा प्रबंधन में राहत एवं पुनर्वास के लिए किए जाने वाले उपायों को बताइए ?
आपदा प्रबंधन में आपदा पूर्व अवस्था मैं जहां तैयारी आती है वही आपदा के उपरांत प्रबंधन में राहत कार्य ,पुनर्वास तथा आपदा रिकवरी आती है।
राहत कार्य
- सामाजिक अनुक्रिया – आपदा में सरकार से भी पहले एक नागरिक समाज की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है जो सबसे पहले सहायता के लिए आगे आता है। N.G.O’s ,S.H.G. स्थानीय नागरिक यह लोग ना सिर्फ राहत कार्य(खाद्यान्न वितरण,स्वास्थ्य सुविधाएं ,) में सहभागिता निभाते हैं बल्कि अपने स्तर पर राहत सामग्रियों का वितरण भी करते हैं सबसे बढ़कर सरकार के राहत कार्यों के क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं
- पुनर्वास – राहत कार्य से तात्कालिक होते हैं किंतु भौतिक स्तर पर जो संपत्ति अवसंरचना नष्ट हुई है एवं मनोवैज्ञानिक स्तर पर जो क्षति हुई है उससे बाहर आने के लिए एक पुनर्वास कार्यक्रम की जरूरत होती है जिसमें लोगों को वैकल्पिक रोजगार, वित्तीय सुविधाएं और संपत्ति पुनर्निर्माण घर एवं संचार के साधन आदि का प्रबंधन किया जाता है ,ताकि वाह क्षेत्र एवं वहां के लोग देश एवं समाज के विकास की मुख्यधारा में शामिल हो सके।
5. मध्य प्रदेश में जनजाति क्षेत्रों का उल्लेख करते हुए उनकी प्रमुख समस्याओं का वर्णन कीजिए ?
मध्य प्रदेश एक जनजाति बहुल क्षेत्र है जहां कुल जनसंख्या का 21% जनजातीय आबादी है मध्यप्रदेश इन जनजातियों बसाहट संपूर्ण म.प्र. में देखी जा सकती है
सहरिया जनजाति – मुरैना, ग्वालियर ,शिवपुरी
भील जनजाति – अलीराजपुर, धार, झाबुआ, बड़वानी
बंजारा जनजाति – बुरहानपुर, खरगोन, बड़वानी, धार, खंडवा
कोरकू जनजाति – बैतूल, होशंगाबाद, छिंदवाड़ा, सिवनी
भारिया जनजाति – छिंदवाड़ा
बैगा जनजाति – बालाघाट, डिंडोरी,अनूपपुर,मंडला शहडोल
अगरिया जनजाति – सिंगरौली, उमरिया, अनूपपुर सीधी
पनिका जनजाति – सीधी, शहडोल
कोल जनजाति – सीधी, सिंगरौली,रीवा, शहडोल
जनजाति बहुल क्षेत्र भारत में सदियों से ही समाज की मुख्यधारा से अलग रहा है जिसके चलते उन्हें सामाजिक सांस्कृतिक धार्मिक एवं राजनीतिक आदि सुविधाओं के लाभ प्राप्त नहीं हो पाता है ।और फिर जब सामाजिक व्यवस्था में व्याप्त स्तरीकरण, विभेदीकरण इतना ज्यादा हो तो इनकी समस्या बहुत बढ़ जाती हैं। मध्यप्रदेश इसका अपवाद नहीं है मध्य प्रदेश जनजाति की निम्नलिखित समस्या है।
- अस्पृश्यता की भावना – आज भी जब तक जनजातियों से भेदभाव के उदाहरण भारत में देखने को मिल जाते हैं
- राजनीतिक पिछड़ापन -लोकतांत्रिक संस्थाओं में जनजातीय लोगों को उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है सरकार ने उनको आरक्षण का अधिकार दिया है किंतु अशिक्षा और जन जागरूकता के अभाव में वह अपने अधिकारों का उपयोग नहीं कर पा रहा है।
- अशिक्षा – आज भी जब अशिक्षा की बात होती है तो अलीराजपुर (36% साक्षर) झाबुआ, बड़वानी, शिवपुरी, धार जिलो नाम सबसे पहले आते हैं ।
- स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं – मध्यप्रदेश की जनजातियां आधुनिक स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित है श्योपूर वाली सहरिया जनजाति में तो कुपोषण का स्तर बहुत ज्यादा है ।
- आर्थिक संपन्नता – भौगोलिक चुनौतियों एवं संचार सुविधाओं के अभाव के कारण जनजातीय लोगों को आर्थिक उपार्जन के अधिक विकल्प नहीं मिलते अतः उनका जीवन अभावों में गुजरता है।
- न्याय प्राप्ति की चुनौती – भारत में जनजातीय सुरक्षा के लिए कई सारे कानून है जिसे ST,SC1989 Act. किंतु इसके बावजूद भी वह सामाजिक पर्यावरण नहीं बन पाया है ताकि यह वर्ग इस कानून का लाभ ले सके
6. मध्य प्रदेश में जनसंख्या के क्षेत्रीय प्रतिरूप का वर्णन कीजिए ?
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार मध्य प्रदेश कुल जनसंख्या 7 26 26 809 है जो भारत की कुल जनसंख्या का 6% है
मध्य प्रदेश की जनसंख्या मालवा क्षेत्र में अधिक केंद्रीकृत है क्योंकि यहां की समजलवायु ,औद्योगिकीकरण एवं परिवहन का अच्छा विकास हुआ है वहीं मध्य प्रदेश का पूर्वी और दक्षिण पूर्वी क्षेत्र में जनसंख्या का केंद्रीकरण कम है क्योंकि यहां की भौगोलिक उच्चावच सामान्य जनसंख्या वितरण में एक बाधा है। मध्य प्रदेश का पूर्वी ,दक्षिण पूर्वी एवं पश्चिमी क्षेत्र में आदिवासी जनसंख्या निवास करती है।
मध्य प्रदेश के प्रमुख जिलों की जनसंख्या
अधिकतम-इंदौर -32,76,697, जबलपुर – 24, 63,289 सागर -23,78,295, भोपाल –
23,71,061 रीवा – 23,65106,
न्यूनतम -निवाड़ी – 4,01,000, आगर मालवा – 5,07,100, हरदा – 5,70,465, उमरिया – 6,44, 758, श्योपुर – 687 861
मध्यप्रदेश में जनसंख्या घनत्व 236 /कि.मी.है भोपाल जिले में सर्वाधिक 855 जबकि न्यूनतम जनसंख्या घनत्व जिला डिंडोरी 94 है मध्य प्रदेश में दशकीय वृद्धि दर 20.35% है।
इस तरह हम देख सकते हैं कि, भौगोलिक उच्चावच के चलते मध्य प्रदेश की जनसंख्या प्रतिरूप में विविधता देखी जा सकती है।
7. भारत के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का वर्णन कीजिए ?
जब नदियां या जलधाराएं तटबंध को पार कर अपने जल को आसपास के क्षेत्र में फैला दें तो इसे बाढ़ कहा जाता है।
बाढ़ आयोग ने बाढ़ की आवृत्ति के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों को तीन भागों में बांटा है
- अधिकतम आवृत्ति के क्षेत्र -यहां हर वर्ष बाढ़ की घटनाएं होती हैं । इसके का अंतर्गत ब्रह्मपुत्र घाटी, निम्न गंगा घाटी, गोदावरी, कृष्णा, महानदी, कावेरी, आदि नदियों के डेल्टा क्षेत्र तथा गंडक व कोसी जैसी नदियों के बाढ़ क्षेत्र शामिल किए जाते हैं ।
- मध्यम आवृत्ति वाले क्षेत्र – यहां 5 वर्ष या कम अंतराल पर बाढ़ की घटनाएं होती हैं भारत के अधिकतर अन्य बाढ़ क्षेत्र सी के अंतर्गत आते हैं।
- निम्न आवृत्ति के क्षेत्र –वैसे क्षेत्र जहां कम वर्षा होती है परंतु सामान्य था 5 वर्षों से भी अधिक अंतराल बाद बादल विस्फोट से अचानक भारी वर्षा तथा अनियमित जल निकासी व्यवस्था के कारण बाढ़ की घटनाएं देखने में आती है।
8. मध्य प्रदेश के डोलोमाइट खनन क्षेत्रों का वर्णन कीजिए ?
मध्य प्रदेश डोलोमाइट एक प्रमुख खनिज है इसका देश के उत्पादन( 27%) में सर्वाधिक योगदान हैं। मध्य प्रदेश के प्रमुख डोलोमाइट खनन क्षेत्र विभिन्न जिलों में पाए जाते हैं।
राज्य के झाबुआ जिले में डोलोमाइट का सबसे अधिक उत्पादन किया जाता है जबकि उसके अन्य उत्पादक जिले अलीराजपुर, इंदौर सिटी, ग्वालियर, सतना, छिंदवाड़ा, मंडला, कटनी और जबलपुर आदि हैं।
भिलाई एवं कटनी सीमेंट संयंत्र को झाबुआ जिले से डोलोमाइट की आपूर्ति की जाती है परंतु टाइल्स उत्पादक कंपनियों को जबलपुर एवं मंडला की डोलोमाइट खानों से आपूर्ति की जाती है।
इस डोलोमाइट का प्रयोग इस्पात निर्माण सीमेंट उद्योग रबर रासायनिक एवं उर्वरक आदि उद्योग में किया जाता है।
9. मध्य प्रदेश की मिट्टियों की प्रमुख विशेषताएं क्या है ?
मध्यप्रदेश वृहद भौगोलिक विस्तार के कारण इसमें विभिन्न प्राकृतिक प्रदेश शामिल हैं इसकी मिट्टी में उत्तर भारतीय मैदानों और प्रायद्वीपीय भारत दोनों की भौगोलिक विशेषताएं झलकती हैं।
1.मध्य प्रदेश की मिट्टी को पांच भागों में बांटा गया है काली मिट्टी लाल मिट्टी जलोढ़ मिट्टी कछारी मिट्टी मिट्टी।
- मध्य प्रदेश में काली मिटटी का सर्वाधिक विस्तार है, जिसका निर्माण बेसाल्ट आग्नेय चट्टानों के चरण से हुआ है इसमें जल सोखने की सर्वाधिक क्षमता है।
- मध्य प्रदेश में जलोढ़ मिट्टी बुंदेलखंड नीस नामक चट्टानो के क्षरण एवं चंबल नदी द्वारा निक्षेपित पदार्थों से निर्मित हुई है ।
- मध्य प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र की लाल-पीली मिट्टी शुष्क व तर मौसम बार-बारी आने के कारण बनती है । यह लेटेराइट चट्टानों की टूट-फूट से इनका निर्माण होता है ऊपर वन संसाधनों की उपस्थिति के कारण वहां कृषि करना चुनौती है
- मध्यप्रदेश में कछारी मिट्टी बाढ़ के बाद अपवाह से निक्षेपित पदार्थों द्वारा निर्मित होती है।
- कछारी तथा जलोढ. मिट्टी का विस्तार मध्य भारत के पठार तक है। प्रदेश में जरूर मिट्टी सबसे अधिक उपजाऊ होती है।
10. हिंद महासागर में आई 2004 की सुनामी के कारण और परिणामों का वर्णन कीजिए ?
कारण
साल 2004 में आज ही के दिन इंडोनेशिया के उत्तरी भाग स्थित असेह के निकट 9.3 तीव्रता के भूकंप के बाद समुद्र के भीतर उठी सुनामी ने भारत सहित 24 देशों में भारी तबाही मचाई थी. हिंद महासागर से उठी उग्र लहर।
प्रभाव
2004 में शक्तिशाली भूकंप के बाद भारत, श्रीलंका, इंडोनेशिया, थाइलैंड, मलेशिया, मालदीव और आसपास के क्षेत्रों में सुनामी ने भारी तबाही मचाई । दुनिया भर में 2.5 लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे।
इसमें से अकेले भारत में 16,279 लोग मारे गए या लापता हो गए थे। आपदा इतनी बड़ी थी कि मृतकों के शव कई दिनों तक नहीं मिले भारत का तटीय प्रायद्वीपीय भाग सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है । भारत में सेना को तत्काल बचाव व राहत कार्य में लगाया गया।
इस आपदा में ना सिर्फ जान माल की हानि हुई बल्कि मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी इसने दुनिया को हिला कर रख दिया था।
11. मध्य प्रदेश में सोयाबीन उत्पादक क्षेत्रों का वर्णन कीजिए तथा प्रदेश में सोयाबीन फसल विस्तार के कारण क्या है?
12. मध्य प्रदेश में सीमेंट उद्योग के स्थानीयकरण का विस्तृत वर्णन कीजिए ?
मध्यप्रदेश में चूना पत्थर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो कि सीमेंट उद्योग के लिए अनुकूल दशाएं निर्मित करता है मध्य प्रदेश के प्रमुख सीमेंट उद्योग निम्नलिखित हैं ।
1) चूना पत्थर की प्रचुरता- प्रदेश में पर्याप्त का भंडार होने कारण यहां बानमोर फैक्ट्री, कैमूर फैक्ट्री, सतना सीमेंट फैक्ट्री, मैहर फैक्ट्री नीमच फैक्ट्री आदि कार्यरत हैं ।
2) तीव्र संचार व परिवहन संरचना -NH 78, NH12X, NH 75 आदि का विस्तार इन क्षेत्रों में है।
3) अन्य खनिज संसाधनों के भंडार – इसी क्षेत्र में ऊर्जा शक्ति के साधन कोयला के भंडार हैं जो फैक्ट्रियों को कच्चा माल उपलब्ध कराता है।
4) विकासशील राज्य मध्य प्रदेश – प्रदेश मैं विकास कार्य होने के कारण सीमेंट की मांग लगातार बनी रहती है।
5) सीमेंट एक आधारभूत उद्योग होना -सीमेंट कच्चे माल के रूप में अवसंरचना आत्मक एवं आधारभूत उद्योग से जुड़ा है अतः इसकी मांग सदा बनी रहती है।
13. मध्यप्रदेश में मृदा अपरदन क्षेत्रों का वर्णन करते हुए मृदा अपरदन को रोकने के उपाय बताइए ?
मृदा अपरदन का अर्थ है बाह्य कारको ( वायु, जल, गुरुत्वीय बल) विस्थापन द्वारा मजा करो को अपनी मूल स्थान से पृथक होकर बह जाना।
मृदा अपरदन को “रिंगती हुई मृत्यु” कहा जाता है मध्यप्रदेश में चंबल नदी का अपवाह क्षेत्र अर्थात भिंड शिवपुर मुरैना ग्वालियर आदि क्षेत्र मृदा अपरदन से सर्वाधिक प्रभावित है।
मध्य प्रदेश का मालवा क्षेत्र, चादरी अपरदन से ग्रस्त है मध्य प्रदेश के प्रमुख जिले इंदौर, धार, देवास, उज्जैन, शाजापुर, आगर मालवा आदि।
उपाय
1) अवनालिकाओं का भराव एवं ढलाव के सारे वेदिकाओं(सोपानी संरचना )का निर्माण करना।
2)बीहड़ क्षेत्रों का समतलन और इन क्षेत्रों में मिट्टी को संगठित करने वाले पौधों का रोपण करना।
3) वृक्ष कटाई पर प्रतिबंध,वृक्षारोपण करना एवं पशु चरण पर प्रतिबंध लगाना।
4) झूम की खेती पर प्रतिबंध, फसल शस्यावर्तन अपनाना, जैविक खेती करना और रसायनों का न्यूनतम प्रयोग।
5) बाढ़ को नियंत्रित करना।
14. मध्यप्रदेश में जल संसाधनों की समस्याओं का वर्णन कीजिए ?
मध्यप्रदेश में जल संसाधनों की मात्रा एवं गुणवत्ता में गिरावट आई है, जल संसाधनों कि अनदेखी और अनियंत्रित मानवीय हस्तक्षेप के कारण आज सभी जल स्त्रोत या तो न्यून हो गए हैं या वो उपभोग के योग्य नहीं हैं उनकी निम्न समस्याएं हैं ।
1) अत्यधिक दोहन – इसके कारण लगातार भौम जल स्तर गिर रहा है।
2) जल प्रदूषण – औद्योगिक गतिविधियां एवं मानवीय क्रियाकलापों के कारण लगातार जल इकाइयां दूषित हो रहे हैं, नदिया, तालाब, भूजल आदि।
3) परंपरागत जल संसाधनों का विलोप-कुएं, बावडियां, तालाब आदि ।यह गाद के कारण छिछले हो गए है इन पर कृषि का विस्तार हो गया है
4) अतिक्रमण -अवसंरचनात्मक निर्माण के चलते शहरों की जल इकाइयां आज विलुप्त हो गए हैं।
5) अनिश्चित वर्षा-भारत ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश में भी मानसून एक सकता है । जो कभी पर्याप्त बारिश लाता है तो कभी सूखे की स्थिति छोड़ जाता है।
6) जल संसाधन के संरक्षण एवं जल संरक्षण की प्रवृत्ति विकसित ना होना (वाटर हार्वेस्टिंग युक्त मकान का ना बनना)
7) त्रुटि युक्त सरकारी योजनाएं -अब सभी जगह जलापूर्ति नलों द्वारा प्रस्तावित है । लेकिन जहां जहां नलो से जलापूर्ति की गई है ,वहां के जल संसाधनो को संरक्षण करने की अब कोई व्यवस्था नहीं होगी।
These answers are compiled by Sarvesh Nagar (NET/JRF & Gave Four interview of MPPSC).
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