Mppsc prelims Unit 5 हिंदी में
मध्यप्रदेश में स्थानीय स्वशासन का विकास
मध्यप्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायती राज एवं नगरीय प्रशासन व्यवस्था का इतिहास
स्थानीय स्वशासन संस्थाओं पर चर्चा करते समय स्थानीय संस्थाओं के इतिहास का वर्णन औपचारिक है। जिसके लिए हमें विभिन्न ऐतिहासिक पहलुओं के महत्व को समझा जाना आवश्यक है। मध्यप्रदेश में पंचायती राज व्यवस्था के विकास क्रम को क्रमशः दो भागों के अंतर्गत प्रथम तथा समझा जा सकता है प्रथम विकास क्रम औपनिवेशिक शासन काल में एवं द्वितीय औपनिवेशिक शासन काल के पश्चात अर्थात स्वतंत्रता के उपरांत।
मध्यप्रदेश में स्थानीय स्वशासन की जानकारी पुराने मध्य प्रदेश के प्रचलित स्थानीय स्वशासन के अध्ययन के बिना अपूर्ण है। मध्यप्रदेश की स्थानीय स्वशासन का विकास क्रम-
1.1883 के पूर्व
2.1883 से 1922
3.1922 से 1947
विवरण :–
1.1883 के पूर्व :-
ग्राम समुदाय जो प्राचीन भारत में फला – फूला क्रमश: मुगल काल में दुर्बल हुआ।अंततः ब्रिटिश शासन काल में पूर्णता नष्ट तथा लुप्त हो गया।
पुनः ब्रिटिश सरकार को स्थानीय शासन की कमी महसूस हुई और इसी प्रकार प्रकार वर्तमान में जो स्थानीय संस्थाएं विद्यमान हैं । वह ब्रिटिश शासन की देन है। स्थानीय स्वसरकार की स्थापना सर्वप्रथम मद्रास मुंबई और कोलकाता तथा बाद में जिले के नगरों में भी की गई। मध्य प्रांत की राजधानी नागपुर में 1864 में म्युनिसिपल परिषद की स्थापना की गई।
ब्रिटिश शासन काल में भारत स्थानीय सरकार की स्थापना के तीन प्रमुख कारण वित्तीय, प्रशासनिक और राजनीतिक थे। इसमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण वित्तीय कारण महत्वपूर्ण था।
1861 में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा प्रारंभ की गई विकेंद्रीकरण की नीति के अंतर्गत स्थानीय सरकार की स्थापना को परंपरागत तरीका प्रदान किया गया।
लॉर्ड रिपन के प्रस्ताव द्वारा ब्रिटिश राज्य के इतिहास में पहली बार भारत के स्थानीय क्षेत्रों में स्वशासन संस्थाओं को स्वायत्तता देने का गंभीर और सार्थक प्रयास किए गए थे।
2.1883 से 1922 :-
लॉर्ड रिपन के 1882 के महत्वपूर्ण प्रस्ताव के आधार पर मध्य प्रांत स्थानीय स्वसरकार अधिनियम (1) 1883 पारित किया गया।
1920 में विधायक विधानसभा में पारित हुआ। 1 मई 1922 में प्रभावशील हुआ। इस अधिनियम द्वारा चुनाव सिद्धांतों वित्तीय स्वतंत्रता अधिकारियों के नियंत्रण को कम करने, स्थानीय संस्थाओं के अधिकारियों में वृद्धि करने और प्रांतीय सरकार के नियंत्रण को कम करने जैसी बातों को सम्मिलित किया गया।
3.1922 से 1947 :-
प्रांतीय सरकार ने 1935 में स्थानीय स्वशासन समिति गठित की समिति ने कुछ आवश्यक सुधार का सुझाव दिया। जिसमें विशेषकर चुनाव, स्टाफ, शासकीय नियंत्रण, कर और लेखांकन के संबंध में विशेष सुझाव देने को कहा गया।
1935 में भारत सरकार अधिनियम पारित होने के पश्चात देश में स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल हुई जिसका स्थानीय संस्थाओं पर एक सकारात्मक प्रभाव पड़ा।
जनपद योजना
1935 के अधिनियम के आधार पर लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की दिशा में प्रथम पहल करने वाले प्रांतों में मध्य भारत का गौरवपूर्ण स्थान रहा है। स्मरणीय है कि भारत में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की पहल बलवंत राय मेहता रिपोर्ट 1957 के द्वारा नहीं हुई अपितु मध्य प्रांत में 1948 में प्रारंभ जनपद योजना के द्वारा हुई। इस योजना का आधार विकेंद्रीकरण था। इस योजना के निर्माता पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र थे।
स्वतंत्रता के पश्चात :-
1946 में जब कांग्रेस सत्तारूढ़ हुई तब 1948 में मध्यप्रदेश ,की विधानसभा में संशोधित रूप से योजना को मध्य प्रांत तथा बरार स्थानीय का शासन अधिनियम 1948 के रूप में स्वीकार कर लिया और यह योजना जनपद योजना के नाम से प्रसिद्ध हुई।
जनपद योजना की विशेषताएं
जनपद योजना को 1 जुलाई 1948 को उद्घाटन किया गया। ब्रिटिश प्रशासन की तरह जिला प्रशासन की दूरी आज भी है।
प्रथम विशेषता- जिला स्तर पर प्रतिनिधित्व और उत्तरदायीं सरकार की स्थापना करना था। योजना का अंतिम उद्देश्य संपूर्ण जिला प्रशासन को चुने हुई संस्था के प्रति उत्तरदायी बनाकर जिला और स्थानीय स्वशासन प्रशासन के बीच अंतर को समाप्त करना था।
1 जुलाई 1950 को जनपद सहित तहसील की स्थापना इसका आशय जनपद स्वयं एक प्रशासनिक इकाई बन सके।
दूसरी विशेषता- तहसील प्रशासन के नए स्तर स्थापित कर दिए। जिलों के स्थान पर तहसील का प्रशासन की इकाई बनाया गया। यह सबसे प्रमुख विशेषता थी। प्रत्येक तहसील को जनपद की संज्ञा दी गई।
तीसरी विशेषता- राज्य प्रशासन एवं स्थानीय प्रशासन में एकीकरण लाने के लिए कई प्रयास किए गए।
चौथी विशेषता- जनपद सभाओं को अधिक सत्ता एवं व्यापक शक्तियां सौंपी जानी थी ।जनपद सभा को पुरानी जिला परिषदों की तुलना में अधिक शक्तियां प्राप्त थी। 16 बाध्यकारी तथा 10 ऐच्छिक शक्तियां भी प्रदान की गई।
नवीन योजना का मुख्य उद्देश्य लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण था। जो जनता तक पहुंचने का व्यवहारिक तरीका माना गया ।जिले के स्थान पर जनपद को प्रशासन की स्वयत्तापूर्ण इकाई बनाना चाहती थी।
नवीन मध्यप्रदेश में सम्मिलित क्षेत्रों में नगरीय एवं ग्रामीण स्थानीय संस्थाओं का विकास
संस्थाओं के विकास का अध्ययन निम्न शीर्षक में करेंगे:-
(1) नगरीय स्थानीय संस्थाओं का विकास
(2) ग्रामीण स्थानीय संस्थाओं का विकास
नगरी स्थानीय संस्थाओं का विकास:-
1 नवंबर 1956 को बने नवीन मध्य प्रदेश का गठन पांच क्षेत्रों – महाकौशल, मध्य भारत, विंध्य क्षेत्र, भोपाल और सिरोंज सब डिवीजन से मिलकर हुआ।
महाकौशल में सी पी और बरार नगरपालिका अधिनियम 1922 लागू था, मध्य भारत नगर पालिका अधिनियम 1954 कार्यरत था ,विंध्य क्षेत्र में विंध्य प्रदेश नगरपालिका अधिनियम 1954 कार्यरत था ,तथा राज्य क्षेत्र में भोपाल राज्य नगर पालिका अधिनियम 1955 के अनुसार शहरी प्रशासन होता था।
1864 में जबलपुर नगर में नगरपालिका स्थापित की गई 1867 में लगभग 14 नगरपालिकाएँ महाकौशल क्षेत्र में स्थापित की गई थी ।1867 अधिनियम निरस्त कर, 18898 में एक नवीन नगर पालिका अधिनियम पारित किया गया। जिसका स्थान म्युनिसिपल अधिनियम 1903 ने लिया।
1903 को निरस्त कर 1922 में सीपी एंड बरार म्युनिसिपल एक्ट लागू किया गया।
महाकौशल क्षेत्र मेंब1889 से 1926 तक लगभग 26 नगरपालिकाएँ स्थापित की गई
1950 में सिटी ऑफ जबलपुर कॉरपोरेशन एक्ट, 1948 लागू किया गया। इसी के अंतर्गत 1 जून 1950 जबलपुर नगर पालिका को जबलपुर नगर निगम में परिवर्तित किया गया।
मध्य भारत में सर्वप्रथम इंदौर नगर पालिका स्थापित की गई। 1877 में नीमच कैंटोनमेंट और बर्फ 1887 में लश्कर (ग्वालियर) नगर पालिका स्थापित हुई ।
30 अक्टूबर 1956 में इंदौर और ग्वालियर नगर पालिका नगर निगम में परिवर्तित किया गया।
विंध्य प्रदेश में सर्वप्रथम वर्ष 1907 में दतिया में नगर पालिका स्थापित की गई ।
भोपाल क्षेत्र में केवल दो नगरपालिकाएँ है सिरोंज सबडिवीजन जब नवीन मध्य प्रदेश विदिशा जिले का हिस्सा बनाया गया।
मध्य प्रदेश नगर निगम का गठन
1 नवंबर 1956 में नवनिर्मित मध्यप्रदेश में नगरीय स्वायत्तता प्रशासन के कार्यों में एकरूपता लाने के लिए और उनका एकीकरण करने के लिए जुलाई 1957 में मध्य प्रदेश सरकार ने नगरी स्वायत्तता स्वशासन समिति का गठन किया ।मध्य प्रदेश नगर निगम अधिनियम 1961 पारित हुआ और 1 फरवरी 1962 से लागू किया गया।
ग्रामीण स्थानीय संस्थाओं को सशक्त बनाने एवं उन्हें संवैधानिक आधार प्रदान करने के लिए 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से प्रयास किए गए थे ।इसी प्रकार नगरीय स्थानीय संस्थाओं के संबंध में 74 वें संविधान संशोधन के माध्यम से प्रयास किए गए थे।
74 वें संविधान संशोधन के अनुसार मध्य प्रदेश सरकार ने 30 दिसंबर 1993 को विधानसभा द्वारा मध्य प्रदेश नगर पालिका एवं पंचायत राज विधेयक 1993 पारित किया ।
19 जनवरी 1994 को श्री लोहानी की अध्यक्षता में मध्यप्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग का गठन किया गया
निर्वाचन आयोग द्वारा नवंबर, दिसंबर 1994 को श्री लोहानी की अध्यक्षता में गठित किया गया। दिसंबर 1994 को श्री लोहानी की अध्यक्षता में मध्य प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग का गठन किया गया।
निर्वाचन आयोग द्वारा दिसंबर 1994 एक साथ सभी नगरीय निकायों के सफलतापूर्वक चुनाव संपन्न किए गए।
ग्रामीण स्थानीय संस्थाओं का विकास
महाकौशल
1920 में मध्य प्रांत और ग्रामीण पंचायत अधिनियम पारित होने के साथ महाकौशल क्षेत्र में पंचायत व्यवस्था का श्रीगणेश हुआ,यह अधिनियम भारत सरकार 1918 द्वारा घोषित सिद्धांतों पर आधारित था।
1935 में राज्य सरकार द्वारा एक जांच समिति गठित की गई ।जिसका कार्य स्थानीय स्वशासन अधिनियम के क्रियान्वयन का मूल्यांकन कर सुधार किए गए ।
निम्न सिफारिशें दी गई –
(1)पंचायतों को सिविल और अपराधी शक्तियां दी गई ।
(2)जिला परिषद की आय का कुछ हिस्सा पंचायतों को दिया जाना ।
(3)कुछ कार्य पंचायतों के लिए स्वैच्छिक कर देना।
1946 में मध्यप्रदेश पंचायत अधिनियम पारित हुआ 1947 में यह लागू किया गया ।
ग्राम अधिनियम को नगरपालिका संबंधी कार्य तथा न्याय पंचायतों न्यायिक कार्य प्रदान किए गए। 1948 सरकार ने शक्तियों और कार्य का विकेंद्रीकरण और स्थानीय स्वशासन के क्षेत्र को व्यापक करने की दृष्टि से जनपद सभा योजना प्रारंभ की।
मध्य भारत
1948 में मध्य भारत यूनियन की स्थापना के पूर्व यूनियन के कुछ राज्यों की ग्राम पंचायत में कार्यरत थी।
मध्य प्रदेश संघ बनने के तुरंत बाद राज्य ने पंचायत व्यवस्था के विकास में एकरूपता स्थापित करने के लिए 1949 में मध्य भारत पंचायत अधिनियम लागू किया।
मध्य भारत पंचायत ढांचे की विशेषता उसका त्रिस्तरीय स्वरूप था। ग्राम स्तर पर ‘ग्राम पंचायत’, राष्ट्रीय विकास सेवा ब्लॉक स्तर पर ‘केंद्र पंचायत’ तथा जिला मुख्यालय स्तर पर ‘मंडल पंचायतें’ गठित थी।
ग्राम पंचायतों के सदस्य का चुनाव वयस्क मताधिकार तथा गुप्त मतदान द्वारा होता था। मंडल पंचायत और केंद्र पंचायत के सदस्य का चुनाव अप्रत्यक्ष तरीके से होता था।
विंध्य क्षेत्र
विंध्य क्षेत्र संघ बनने के बाद 1949 ग्राम पंचायत अध्यादेश पारित हुआ, जो अक्टूबर 1951 प्रभावी हुआ
भोपाल
1949 भोपाल C श्रेणी के राज्य के रूप में गठित हुआ। नवाब भोपाल के कार्यकाल में सर्वप्रथम 1947 में ग्राम पंचायतों की स्थापना हुई। 1952 में भोपाल राज अधिनियम पारित हुआ
सिरोंज
यह राजस्थान पंचायत अधिनियम के अंतर्गत कार्यरत थी
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