मध्यप्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायती राज एवं नगरी प्रशासन व्यवस्था Part 2
ग्रामीण स्थानीय संस्थाएं
ग्राम सभा
ग्राम सभा का महत्व :- किसी भी पंचायत क्षेत्र के समस्त वयस्क नागरिकों के सम्मिलित स्वरूप या समूह को ग्रामसभा कहते हैं ।यह एक ऐसी संस्था है जो प्रत्यक्ष प्रजातंत्र की अवधारणा से मेल खाती है ।
‘अर्थात प्रत्यक्ष प्रजातंत्र में किसी राज्य की समस्त वयस्क जनता एक स्थान पर एकत्र होकर शासन संबंधी कार्यों का संचालन करती है ।’
बलवंत राय मेहता समिति ने पंचायत राज्य को जो त्रिस्तरीय ढांचा सुझाया उसमें ग्राम सभा का प्रावधान नहीं किया था। बलवंत राय मेहता रिपोर्ट के बाद भारतीय संघ में लगभग सभी राज्यों ने पंचायत राज्य को अपनाया है।
” महात्मा गांधी ने भारत में सच्चे लोकतंत्र की कामना की थी।”
मध्यप्रदेश में ग्राम सभा:- देश में पंचायत राज्य की संरचना और कार्य प्रणाली को गतिशील बनाने की दृष्टि से भारत सरकार द्वारा 1993 में किए गए 73वें संविधान संशोधन अधिनियम में ग्राम सभा को संविधानिक मान्यता दी गई।
संविधान संशोधन के माध्यम से प्रावधान किया कि ग्राम स्तर पर ग्रामसभा ऐसी शक्ति का प्रयोग और ऐसे कार्यों का निर्वाह करेगी जो राज्य विधान मंडल द्वारा अधिनियम बनाकर प्रस्तावित किए जाएंगे। त्रिस्तरीय पंचायत राज्य की संरचना को ही मान्यता दी गई है और ग्राम सभा के भी धरातल पर लोकतांत्रिक इकाई और लोक शक्ति के प्रतीक के रूप में मान्यता दी गई है।
ग्राम सभा की परिभाषा:- ग्राम सभा की परिभाषा मध्यप्रदेश अधिनियम दिनांक 5-4-1949 संशोधन अधिनियम 5/ 1999 के अनुसार संशोधन किया गया। संशोधित परिभाषा में राजस्व ग्राम या वनग्राम दोनों से संबंधित निर्वाचन नामावलीयो में रजिस्ट्रीकृत व्यक्तियो जो संगठन बनेगा ‘ग्रामसभा’ नाम दिया गया है।
अधिनियम में कहा गया है कि प्रत्येक ग्राम के लिए ग्राम सभा होगी जिसमें पंचायत क्षेत्र के भीतर समाविष्ट गांव या गांव के समूह संबंधित निर्वाचन नामावलीयो में रजिस्ट्रीकृत व्यक्ति होंगे।
प्रत्येक ग्राम के लिए एक मतदाता सूची होती है जो अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों के उपबन्धो के अनुसार तैयार की जाती है
(निम्न पात्रता- उस ग्राम का मामूली तौर से निवासी है तो वह रजिस्ट्री कृत किए जाने का हकदार है)
ग्राम सभा की बैठक
• ग्राम सभा की प्रत्येक माह में एक बैठक अनिवार्य रूप से होती है।
• ग्राम सभा की प्रथम बैठक की तारीख सभा और स्थान सरपंच द्वारा निश्चित किया जाता है ।
•ग्राम सभा की बैठक अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उप सरपंच द्वारा की जाती है सरपंच और उपसरपंच दोनों के अनुपस्थिति में ग्राम सभा की बैठक अध्यक्षता में उपस्थित सदस्यों के बहुमत से इस प्रयोजन के लिए निर्वाचित किए गए ग्राम सभा के किसी सदस्य द्वारा की जाती है। •सरपंच या ग्राम सभा 10% से अधिक सदस्य या 50 सदस्य लिखित नोटिस देकर ग्राम सभा की बैठक बुला सकते हैं ।
•लिखित सूचना मिलने के 7 दिन के भीतर सचिव ग्राम सभा की बैठक बुलाता है।
• ग्राम पंचायत का सचिव भी ग्राम सभा का सचिव होता है।
संकल्प :- ग्राम सभा को अधिनियम के अधीन सौंपे गए विषयों से संबंधित कोई भी संकल्प ग्राम सभा की बैठक में उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से पारित किया जाता है। ग्राम सभा की बैठक आयोजित करने के बारे में यह प्रावधान नियमों में किया गया है कि इसकी सूचना 7 दिन पूर्व दी जानी चाहिए आपात बैठक की सूचना 3 दिन पूर्व देने की व्यवस्था रखी गई है।
ग्राम सभा की शक्तियां तथा कार्य:- अधिनियम की धारा 7 द्वारा ग्राम सभा की निम्नलिखित शक्तियां एवं कार्य प्रदान किए गए हैं।
• ग्राम से आर्थिक विकास संबंधी कार्य
•सामाजिक तथा आर्थिक विकास योजनाएं
•ग्राम पंचायत के वार्षिक बजट पर विचार करना
•गरीबी उन्मूलन तथा अन्य कार्यक्रम •सामुदायिक कल्याण कार्यक्रम •स्वच्छता व सफाई
•सामाजिक सड़कों, संडासो ,नालियों, तालाबों ,कुओं की निर्माण व साफ-सफाई ।
वार्षिक बैठक
ग्राम सभा की वार्षिक बैठक वित्तीय वर्ष के प्रारंभ होने के कम से कम 3 माह पूर्व आयोजित की जाती है ।इस बैठक का वार्षिक विवरण पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष के लेखकों का व्योरा और प्रशासनिक रिपोर्ट आने वाले वित्तीय वर्ष अंतिम ऑडिट रिपोर्ट और उसके संबंध आगामी वर्ष की योजना बनाना।
ग्राम सभा की स्थायी समिति:- ग्रामसभा अपने कार्यों को सुचारू रूप से संपन्न कराने के लिए निर्णय स्थायी समिति की स्थापना कर सकती है ।
•ग्राम विकास समिति
• सार्वजनिक संपदा समिति
•कृषि समिति
•स्वास्थ्य समिति
• ग्राम रक्षा समिति
•अधोसंरचना समिति
• शिक्षा समिति
•सामाजिक न्याय समिति
उपर्युक्त स्थायी समितियों के अतिरिक्त ग्रामसभा किसी विशेष कार्य के लिए तदर्थ समितियों का गठन भी कर सकती है ऐसी समितियों का कार्यकाल रिपोर्ट देने के पश्चात समाप्त हो जाता है ।
ग्राम विकास समिति को छोड़कर अन्य स्थाई समिति का एक सभापति होता है जिसका कार्यकाल 1 वर्ष का होता है सभापति का निर्वाचन समिति के सदस्य ही करते हैं।
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This article is written by Supriya Kudaraya