मध्यप्रदेश की मिट्टियां
भारत के दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठार का वह भू-भाग है जहां विस्तृत प्रदेश में अपशिष्ट मिट्टी पाई जाती है, यहां की मिट्टी प्रकृति के निर्धारण में स्थित चट्टाने महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।यहां पर मिट्टी के कटाव की समस्या मिलती है ।मध्य प्रदेश अत्यंत प्राचीन भूखंड भाग है जो चट्टानों से बना है मध्यप्रदेश में पाई जाने वाली मिट्टियों को पांच भागों में वर्गीकृत किया गया है ।
1. काली मिट्टी( रेगुर या ह्यूमस ) – काली मिट्टी में भी तीन प्रकार के भाग मिलते हैं – (A). गहरी काली मिट्टी, (B). साधारण गहरी काली मिट्टी, (C). छिछली काली मिट्टी काली मिट्टी ।
2. जलोढ़ मिट्टी (रेह,धूर ,कल्लर)
3. लाल -पीली मिट्टी
4. लेटराइट मिट्टी
5. बलुई मिट्टी
6. मिश्रित मिट्टी
1. काली मिट्टी
- स्थानीय लोग ”भर्री या कन्हर”भी कहते हैं।
- मध्यप्रदेश में सर्वाधिक भाग पर काली मिट्टी पाई जाती है लगभग 45.6% भाग पर
- जबकि गहरी काली मिट्टी 3.5% स्थान पर साधारण गहरी काली मिट्टी से 37% स्थान पर तथा छिछली काली मिट्टी 7.1 % भाग पर पाई जाती है ।
- काली मिट्टी दक्कन ट्रैप मालवा के पठार बेसाल्ट आग्नेय चट्टानों से लावा मिट्टी है।
- काली मिट्टी में लोहा ,एलुमिनियम चुने ,नाइट्रोजन, मैग्निशियम कार्बोनेट कार्बन ,पोटेशियम पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं लेकिन काली मिट्टी में जैविक तत्वों की कमी पाई जाती है।
- काली मिट्टी को रेगुर मिट्टी इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस मिट्टी में जल धारण क्षमता अधिक होती है।
- मुख्य क्षेत्र- मालवा का पठार ,निमाड़, नर्मदा नदी का क्षेत्र, सतपुड़ा क्षेत्र, छिंदवाड़ा ,सिवनी, बैतूल, सीधी मे इसका विस्तार देखने को मिलता है।
- गहरी काली मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी मुखी के उद्गार से माना जाता है यह बड़ी उपजाऊ होती है यह नर्मदा घाटी सतपुड़ा मालवा के पठार में पाई जाती है।
- काली मिट्टी कपास की खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती है साधारण गहरी काली मिट्टी का निर्माण बेसाल्ट धारवाड़ से ग्रेनाइट नी साधी चट्टानों के
- क्षरण के कारण हुआ है यह उतरी मालवा का उत्तरी पठार और नर्मदा घाटी के क्षेत्र में देखने को मिलती है ।
- छिछली काली मिट्टी का निर्माण बेसाल्ट ट्रैप से हुआ है यह मिट्टी सतपुड़ा मैकल श्रेणी में देखने को मिलती है।
2. जलोढ़ मिट्टी
- यह मध्य प्रदेश के उत्तरी पश्चिमी भागों में मुख्यता भिंड, मुरैना ,श्योपुर, शिवपुरी, ग्वालियर आदि जिलों में पाई जाती है ।
- लगभग 30 लाख एकड़ क्षेत्र में 7.57% जलोढ़ मिट्टी के मैदान मौजूद हैं।
- यह चंबल नदी के नीचे को और बुंदेलखंड नीस से निर्मित है।
- इसकी प्रकृति क्षारीय होती है,इसी कारण इसे क्षारीय मिट्टी भी कहा जाता है ।
- इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस आदि की कमी होती है लेकिन पोटाश, फास्फोरिक एसिड, चूना अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में पाया जाता है अतः यह खाद और सिंचाई से ही इसे पर्याप्त मात्रा से उपजाऊ बनाया जा सकता है।
- इससे एल एलयूवाएल मिट्टी दोमट मिट्टी भी कहते हैं। इस मिट्टी में बालू, सिल्ट,मृतिका का अनुपात 50:19.6:29.4 पाया जाता है।
- इस मिट्टी में बालू की अधिकता के कारण अपरदन अधिक होता है ।
- यह मिट्टी गेहूं, गन्ना सरसों आदि फसलों के लिए उपयुक्त मानी जाती है ।
3. लाल -पीली मिट्टी
- यह दूसरी सर्वाधिक उपजाऊ मिट्टी के रूप में जानी जाती है।
- इसका अधिकांश भाग वर्तमान छत्तीसगढ़ में चला गया है तथापि यह बुंदेलखंड की कुछ भाग मुख्यता बघेलखंड में देखने को मिलती है विशेषकर मंडला ,डिंडोरी, बालाघाट अनूपपुर ,उमरिया ,सीधी, सिंगरौली शहडोल जिले में लाल पाया जाता है।
- गोडवाना क्रम की चट्टानों का यंत्र तथा कृष्टि नाइट से निर्मित यह मिट्टी कम उपजाऊ होती है ।
- इसमें नाइट्रोजन काफी कम होता है जबकि चूने की प्रधानता होती है।
- इस का पी एच मान 5.5 से 8.5 के मध्य होता है इसलिए धान के लिए उपयुक्त है ।
- फेरिक ऑक्साइड होने के कारण जल योजन से और लोहे के ऑक्सीकरण के कारण लाल होता है समानता लाल रंग ऊपर की परत पर तथा निचले की सतह पीली होती है काली और लाल पीली मिट्टी साथ-साथ पाई जाती है ।
- काली लाल -पीली मिट्टी लगभग 36.5% भूभाग पर पाई जाती है।
4. लैटेराइट मिट्टी
- इस मिट्टी को भाटा मिट्टी भी कहा जाता है।
- यह छिंदवाड़ा बालाघाट जिले के लगभग 17%भाग पर देखने को मिलती है।
- यह म चट्टानों की टूटन से निर्मित मिट्टी है इसमें ह्यूमन एंड नाइट्रोजन फास्फेट चूना कैल्शियम जैविक पदार्थ आदि की कमी पाई जाती है।
- जबकि पोटाश तथा आयरन ऑक्साइड की अधिकता देखने को मिलती है , अतः यह अनूपजाऊं होती है इसमें मोटे अनाज ही होते हैं।
इसके अंतर्गत मात्र 4% हिस्सा ही आता है । - इसमें रेट, कंकर, पत्थर बहुत मात्रा में देखने को मिलते हैं ।
- इस का पीएच मान 7 से अधिक होता है ।
- इसमें ज्वार, बाजरा, कोदो ,कुटकी जैसी मोटी फसलें होती हैं ,आलू तिलहन आदि के लिए भी उपयुक्त होती है ।
- यह मिट्टी का निर्माण शुष्क और तर मौसम वाले क्षेत्र में होता है यह मिट्टी चट्टान की टूट-फूट की रासायनिक क्रिया से बनती है।
5. बलुई मिट्टी
- इसे लाल रेतीली मिट्टी भी कहा जाता है ।
- यह बुंदेलखंड के कुछ भाग में कंकर और बालू से मिश्रित मिट्टी पाई जाती है।
- यह नीस, ग्रेनाइट चट्टानों की टुटन से निर्मित है ।
- इसमें लोगों की अधिक मात्रा में पाया जाता है तथा ह्यूमर्स और पोटाश की कमी पाई जाती है।
- यह महीन रवेदार तथा रेत के कण युक्त मिट्टी होती है ।
- यह मोटे अनाज के लिए उपयुक्त मानी जाती है ।
- यह मिट्टी वनीकरण के लिए सर्वोत्तम मिट्टी है।
मिश्रित मिट्टी
- यह मिट्टी मध्य प्रदेश के अनेक क्षेत्रों में लाल पीली और काली मिट्टी के साथ देखने को मिलती है।
- इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस और कार्बनिक पदार्थों की कमी रहती है, तथा इसमें मोटे अनाज ही बोए जाते हैं ।
- यह मध्य दक्षिण मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में पाई जाती है ।
- यह लगभग 81 लाखहेक्टेयर क्षेत्र के अंतर्गत पाई जाती है ।
- बालाघाट में काली और पीली मिट्टी का मिश्रण पाया जाता है।
मृदा अपरदन या भूमि क्षरण
- मध्यप्रदेश में मृदा अपरदन सर्वाधिक मध्य भारत के पठार चंबल एवं चंबल की सहायक नदियों द्वारा होता है।
- मध्य भारत का पठार बीहड़ों के लिए जाना जाता है एक अनुमान के अनुसार मध्य प्रदेश में 15लाख हेक्टेयर भूमि बीहड़ों में परिवर्तित हो गई है।
जब जल तेजी से बढ़ता है तो उनकी धाराएं मिट्टी को कुछ गहराई तक काट देती है इस प्रकार अपहरण को अवनालिका क्षरण भी कहते हैं । - यह भूमि कटाव को रोकने के लिए महत्वपूर्ण वनो वनस्पति का अभाव है क्योंकि यहां की भूमि पठारी पहाड़ी और ढलवा है।
अत: तेज बारिश भी भूमि कटाव को जन्म देती है यह सर्वाधिक प्रभावित जिला मुरैना है।
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