मध्य प्रदेश के मध्यकालीन साहित्यकार एवं उनकी रचनाएं
केशवदास
जीवन परिचय
- हिंदी साहित्य के रीतिकाल के प्रथम आचार्य महाकवि केशवदास काशीनाथ में पुत्र थे ।
- जन्म 1555 ईसवी में सनाढ्य ब्राह्मण परिवार में हुआ .
- ओरछा नरेश इंद्रजीत के दरबार में कवि थे जहां उनका गुरु की भांति आदर होता था।
- मृत्यु 1617 ईस्वी में
- इन्होंने सर्वप्रथम अलंकारों को महत्वपूर्ण स्थान देने व रस सिद्धांत अवहेलना कर हिंदी काव्य में अलंकार सिद्धांत की स्थापना करने का प्रयत्न करने वाले अलंकारवादी कवि केशवदास जी हिंदी साहित्य मैं रीतिकाल के प्रथम कवि एवं आचार्य हैं ।
रचनाएं
1. रसिकप्रिया
2. कविप्रिया
3. विज्ञान गीता
4. जहांगीर जस-चंद्रिका
5. रामचंद्रिका
6. रतनवामिनी
7. छंदमाला
8. वीरसिंह देव चरित्र
9. राम अलंकृत मंजरी
10. नख-शिख - रामचंद्रिका इस ग्रंथ में राम कथा का वर्णन है व अलंकारों का प्रयोग है इसमें राजसी ठाठ-बाट दरबारी नीति, राजनीति, कूटनीति तथा संभावना कला का अनूठा प्रदर्शन है ।
- कवि प्रिया एक अलंकार ग्रंथ है इसमें के सामने कवि कर्म को समझाया है यह महाराज इंद्रजीत सिंह की पतिव्रता गणिका को शिक्षा देने के लिए लिखी थी।
- रसिकप्रिया यह ग्रंथ रसो का भंडार है इसमें श्रंगार वर्णन अत्यंत उत्तम रूप में है ।
- रतन बाबरी इसमें राजा रतन सिंह की वीरता का वर्णन है ।
- विज्ञान गीता यह एक दार्शनिक विचार पर प्रदर्शित है इस काव्य आध्यात्मिक है ।
- केशव को रीतिकाल का प्रथम कवि माना जाता है।
पद्माकर
जीवन परिचय
- हिंदी साहित्य में रीति काल कवियों में पद्माकर का नाम सर्वाधिक लोकप्रिय रहा है।
- जन्म -1773 ईसवी
- मृत्यु -1833 कानपुर
रचनाएं - इन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना की जिन्हें तीन श्रेणियों में विभक्त किया जाता है।
1. श्रंगार काव्य – पद्माभरण , जगद्वविनोद, अली जहाप्रकाश, हितोपदेश।
2. प्रशस्ति काव्य – हिम्मत बहादुर विरुदावली ,प्रताप सिंह विरुदावली 3भक्ति वैराग्य काव्य – प्रबोध पचासा, गंगालहरी, राम रसायन, राजनीति की वचनिका। - पद्माकर जी की रचनाएं वीर भक्ति और रीति की प्रवृत्तियों की छाप दिखाई देती है इनकी रचनाओं में प्रभाव में असहजता की भावना भावनुकुलता का सजीव चित्रण क्षमता क कारण अपना साहित्य जनता के बीच अत्यंत लोकप्रिय रहा है ।
भूषण
जीवन परिचय
- रीति काल में श्रृंगार की चकाचौंध में भूषण की ख्याती वीर रस के कवि के रूप में हैं ।
- वीर रस इनका मुख्य विषय बना कर अपना अलग स्थान बनाया है।
- इन्हें चित्रकूट के सोलंकी राजा रुद्र से इनको भूषण की उपाधि मिली।
- आश्रय दाता सेवा जीवन छत्रसाल थी ।
रचनाएं - इनकी रचनाएं राष्ट्रीय राष्ट्रीय अस्मिता और संस्कृति के संरक्षक ओजस्वी कवि रहे हैं यह श्रंगार भावना में ना लिखकर जनता में देशभक्ति और साहस की वृद्धि की।
1. शिवा भूषण
2. शिवा बामिनी
3. छत्रसाल दशक
4. भूषण उल्लास
5. भूषण हजारा
6. दूषण उल्लास - शिवा भूषण प्रसिद्ध अलंकार ग्रंथ रचनाकाल संवत 1730 के लगभग रहा है शिवाजी के पराक्रम और युद्ध और कौशल पर वीर रस के साथ उल्लेख किया है यह ग्रंथ ब्रज भाषा में लिखा गया है ।
- छत्रसाल दशक छत्रसाल के युद्ध का अतिशयोक्ति पूर्ण चित्रण इसी ग्रंथ में किया गया है इनके ग्रंथों की भाषा बुंदेलखंडी निश्चित ब्रजभाषा रही है।
This article is compiled by Supriya Kudraya.
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