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मध्य प्रदेश की लोक कलाएं

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मध्य प्रदेश की लोक कलाएं

भित्ती कलाएं

  • मानव संसार में सबसे पहले प्रवेश करता है वह अपनी कला से प्रकृति को एक सौंदर्य और विशेष माध्यम से अभिव्यक्ति देता है जो कला को जन्म देती है कल्पना की सौंदर्य आत्मा अभिव्यक्ति का नाम ही कला है । कला भाव की अभिव्यक्ति को कहते हैं जो तीव्रता से मानव के हृदय को छू सके कला के माध्यम अलग-अलग या पहचान अलग हो सकती है यथा संगीत वास्तु चित्रकला आदि।

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रविंद्र नाथ टैगोर के शब्दों में

” जो सत है जो सुंदर है वही कला है”

चित्रकला

  • आज का समय कला चित्रकला के क्षेत्र में काफी व्यापक हो गया है इसमें विज्ञान एवं बुद्धि जैसे नवीन प्रयोगों से कला को एक नया स्वरूप मिला है।

परिभाषा

  • किसी समतल धरातल पर जैसी भित्ति ,काष्ठ फलक आदि पर रंग तथा रेखाओं की सहायता से लंबाई-चौड़ाई- गोलाई तथा ऊंचाई को अंकित कर किसी रूप का आभास करना ही चित्रकला है।

मध्यप्रदेश में चित्रकला का विकास

  • पुरातात्विक साक्ष्य वर्तमान मौजूद चित्रों के आधार पर मध्यप्रदेश में अति प्राचीन चित्रकारी देखने को मिलती है ।मध्यप्रदेश में पुरापाषाण काल के समय के साथ भीमबेटका, नागदा टोली आदि स्थानों पर वहां के मृदभांड व शैल चित्रों के माध्यम से मिलती है ।
  • चित्रकूट ,जोगीरा और कबरा की गुफाओं के चित्र महाकाव्य युग के प्रमुख चित्र हैं ,यहां पर दीवारों पर  नदी के किनारे चट्टानों पर लोहे चित्र बनाए गए हैं ।जिसमें आखेट का चित्र पशु-पक्षी के चित्र पशु व अर्ध मानव के चित्र उस समय की जीवन शैली का वर्णन करते हैं।
  • उज्जैन की भरथरी गुफा विदिशा के पास उदयगिरि की गुफा और बाघ की गुफाओं के चित्र में रंगीन चित्रकारी देखने को मिलती है।अशोक के सांची स्तूप की चित्रकारी भी उस समय की चित्रकला को दर्शाती है। राजपूत कालीन मध्यप्रदेश की श्रेष्ठ चित्रकला मानी जाती है इस चित्रकारी में गुफाओं में ताजमहल ,किलो में मंदिरों में चित्रकारिता को पहुंचाया। इन चित्रों में भावनात्मकता का विशेष स्थान देखने को मिलता है ।
  • शिल्प परमार शासकों के समय मध्यप्रदेश में चित्रकला अपने चरमोत्कर्ष पर थी। इस्लामिक आक्रमणों के बाद चित्रकला में एक नया परिवर्तन आया और चित्रकला साधारण पत्थरों की जगह संगमरमर के पत्थरों पर देखने को मिली नक्काशी व मेहराब के साथ पारदर्शी वस्तुओं का प्रयोग इस चित्रकला की विशेषता थी।
  • मध्य प्रदेश में इंदौर ग्वालियर भोपाल जबलपुर आदि नगरों व विद्यालयों की स्थापना की गई विद्यालयों से मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध चित्रकार श्री नारायण, श्रीधर बेंद्रे , मकबूल फिदा हुसैन, जोशी जैसे चित्रकारों ने जन्म लिया। मध्यप्रदेश में आधुनिक चित्रकार तुकोजीराव होलकर, श्री रामचंद्र राव, प्रतापराव, विष्णु चिंचालकर, प्रभात, रमेश पटेरिया आदि का योगदान भी चित्रकला के क्षेत्र में उल्लेखनीय है ।हम देखते हैं कि मध्यप्रदेश में किस-किस क्षेत्र में कौन-कौन सी कलाएं जन्मी।
  • मध्य प्रदेश अपनी लोकचित्र व क्षेत्रवाद परंपरा जो मध्य प्रदेश की विशेषता अवसरों व त्यौहारों पर गृह- सज्जा में प्रयोग की जाने वाली भित्ति चित्र चौक भूमि पर अलंकरण कपड़ा लकड़ी की पट्टी का गोदन, मेहंदी, शरीर सज्जा आदि यहां देखने को मिलती है चित्रों में देवी-देवताओं, पौराणिक कथा ,मानव ,पशु, जीव-जंतु ,पेड़-पौधे, ज्यामिति आकृति के शुभ चिन्ह आदि का अंकन देखने को मिलता है। लोक चित्रकार रंग विधान अदृश्य विधान बड़ा सरल होता है सभी लोग चित्रपट आत्मक होते हैं जिनका गहरा अर्थ होता है।

निमाड़ी लोक चित्र

  • निमाड़ क्षेत्र में ‘मांडना’ भूमि अलंकरण की विशिष्ट कलाविद्या है। यह दीपावली के अवसर पर घर के आंगन में व लक्ष्मी पूजा स्थल पर बनाई जाती है। इसमें निवाड़ी देवी- देवता ,पशु-पक्षी, मानव चित्र एवं अंत में आंख बनाकर प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। निमाड़ में दो तरह के लोग चित्र प्रसिद्ध हैं प्रथम रंगों के द्वारा दूसरा गोबर व मिट्टी के द्वारा ।

मालवा की लोक चित्रकला

  • मालवा क्षेत्र में भी त्योहारों पर भित्ती चित्र अलंकरण वहां की महिलाओं द्वारा किया जाता है ,साथ ही पेशेवर चित्रों का चित्रांकन विशिष्ट जाति के द्वारा किया जाता है जिसे चित्रवण कहते हैं ।इसमें  दूल्हा-दुल्हन, घुड़सवार ,देवी- देवता आदि के रंग होते हैं। यहां पर भी भूमि के  अलंकरण रूप में एक प्रथा है विशेषकर यह दीपावली पर बनाई जाती है। यहां महिलाओं में गोदना गोदवने की परंपरा भी काफी देखने को मिलती है।

बुंदेली लोकचित्र

  • बुंदेली लोकचित्रकारी अपनी विशेषता उनकी रंग रेखाओं में दिखाई देती है।  सुरेती यहां की पारंपरिक भित्ति चित्रण कला है। यहां पर महिलाओं के द्वारा गेरू से लक्ष्मी का चित्र बनाकर मुहूर्त विवाह के अवसर पर भित्ती रेखांकन किया जाता है ।
  • इसमें पुतरी प्रमुख आकृति होती है। नवरात्र कुंवारी कन्याओं नवरात्रि के अवसर पर इसे बनाया जाता है। यह एक भित्ति चित्रण होता है ।इसे गोदान को गोबर  से बनाया जाता है। दीपावली की पूजा की जाती है यहां पर चौक बनाने की प्रथा गाजीपुर जिले थे।

बघेली लोकचित्र

  • बघेली लोकचित्र उत्तर प्रदेश से ज्यादा प्रभावित हैं। यहां पर लोकचित्र  बिम्बात्मक होते हैं । जैसे – कोहबर वैवाहिक अनुष्ठान का भित्ति चित्र है, तिलंगा यह कोयले से चित्रांकन किया जाता है, छठी माता का चित्र यह मोर भित्ति चित्र आदि। बघेलखंड में प्रत्येक तिथि त्योहारों पर चित्रांकन किया जाता है।

चित्रकारी का महत्व

  • लोक कला स्वत: ही अपने सरल के रूप में हमारे जीवन का एक अंग बन गई है। लोक कला पर आधारित नए प्रयोग आज कलाकारों को एक अपूर्व सफलता की ओर ले जा रहे हैं।

This article is written by Supriya Kudraya.

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