जनजातीय लोक नृत्य
मध्यप्रदेश में अनेक प्रकार की जनजातियां निवास करती हैं, उनके अपने लोक नृत्य है, आइए हम जानते हैं की किस जनजाति द्वारा कौन सा नृत्य किया जाता है
भारिया – भड़म- सैतम नृत्य
- यह भारिया जनजाति में प्रचलित नृत्य है।
- भारिया जनजाति द्वारा भड़म, सैतम, सैला व आहिराई प्रमुख नृत्य है।
- भड़म नृत्य को अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे -गुन्नू साही ,भडनी, भेदनाई , भरनोट या भंगम।
- इसमे गाना मंद गति से उठाया जाता है, और फिर तीव्रता की ओर ले जाया जाता है ।
- सैतम भारिया महिलाओं का नृत्य है, इसमें किशोरियों की संख्या अधिक होती है इसमे महिलाएं दो अलग-अलग भागों में विभाजित होती हैं ।
- इसमें ढोलक की थाप पर विराम दिया जाता है, और महिलाएं एक-एक दो-दो पंक्तियां गाती हैं, ढोलक और मंजीरो के साथ महिलाएं गाती हैं और झुककर तीव्र गति से नृत्य करती हैं।
परधोनी
- बैगा जनजाति द्वारा किया जाता है।
- इस नृत्य में श्रंगार गीत गाए जाते हैं।
- पर्व- विवाह के अवसर पर बारात की अगवानी के समय किया जाता है।
- इस नृत्य कलात्मकता की अपेक्षा उल्लास की अभिव्यक्ति अधिक दिखाई पड़ती है।
दादरिया और दशहरा
- बैगा जनजाति द्वारा किया जाता है।
- इस नृत्य में श्रंगार गीत गाए जाते हैं।
- यह नृत्य दशहरे के दिन से शुरुआत की जाती है, क्योंकि दशहरे का बेगा आदिवासी त्यौहार को नहीं मनाते है।
- दादरिया गीत एक प्रेम गीत की तरह होते हैं ।
- इसमें दूसरे गांव की युवतियां दादरिया नृत्य करते हुए युवकों का स्वागत करती हैं, यहां पर यह अपनी पसंद से जीवनसाथी चुनने के लिए पूर्ण स्वतंत्र होते हैं।
मदारी नृत्य
- इस समय मदारी का करताल पर नृत्य किया जाता है ।
- इसमें गीत नहीं गाये जाते।
- पुरुष नर्तक इसमें हिस्सा लेते हैं, कही-कही दो प्रकार का होता है दूसरे प्रकार के मदारी में युवक-युवतियां दोनों भाग लेते हैं यह प्रत्येक रीति रिवाज पर्व व उत्सवों पर किया जाता है ।

लहंगी नृत्य
- सहरिया जनजाति द्वारा यह नृत्य अपनाया गया है।
- यह नृत्य भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में प्रसिद्ध है।
- यह श्रावण माह में समूह बनाकर किया जाता है ।
- भुजरियों जुलूस के आगे-आगे पुरुषों द्वारा लहंगी नृत्य किया जाता है ।
- इन नृतकों हाथों में डंडे होते हैं।
हुलकी नृत्य
- मुरिया जनजाति द्वारा किया जाता है।
- इस नृत्य में श्रंगार गीत गाए जाते हैं।
- इस नृत्य में लड़के और लड़कियां दोनों ही भाग लेते हैं।
- यह है किसी विशेष समय सीमा से नहीं बंधा है यह कभी भी नाचा व गाया जा सकता है।
थापटी नृत्य

- कोराकूओ का पारंपारिक लोकप्रिय नाच।
- समय चैत्र वैशाख में स्त्री पुरुष दोनों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है।
- इसमें युवतियों के हाथ में ‘चिरकोरा’ वाद्ययंत्र और युवकों के हाथ में ‘पंछा और झांझ’ नामक वाद्य यंत्र होता है। •यह गोला बनाकर दाएं-बाएं झुक-झुक कर नृत्य किया जाता है।
- इस के प्रसिद्ध कलाकार मौजी लाल को माना जाता है।
अटारी नृत्य
- बघेलखंड में भूमिया बेगा द्वारा किया जाता है।
- यह नृत्य वार्तालुकर होता है ।
ढाढल नृत्य
- यह नृत्य कोरकू जनजाति द्वारा किया जाता है।
- इस नृत्य में श्रंगार गीत गाए जाते हैं।
- ज्येष्ठ -आषाढ़ मास मैं रातों में किया जाता है ।
- नृत्य के साथ ढोलक, मृदंग आदि का उपयोग किया जाता है।
धाड़ नृत्य
- झाबुआ जिले के आदिवासियों द्वाराकिया जाता है।
- यह नृत्य वर्षा से संबंधित है।
- यहकेवल लड़कियों द्वारा किया जाता है, इस नृत्य में मेघबाबा को वर्षा का निमंत्रण देने के लिए किया जाता है।
- किसी भी वाद्य का प्रयोग नहीं किया जाता केवल गीत गाए जाते हैं ।
- नृत्य के अंत में बकरे की बलि भी दी जाती है।
भराड़ी नृत्य
- झाबुआ जनजाति द्वाराकिया जाता है।
- विवाह उत्सव पर हल्दी लगाए जाने वाले दिन विवाह के पूर्व रात भर गीतों को गाया जाता है।
- दूल्हे को कंधे पर उठाकर एक व्यक्ति नाचता है इसमें कोई वाद्य यंत्र का प्रयोग नहीं होता।
सरहुल
- यह सरहुल उराव जनजाति अनुष्ठान नृत्य है।
- चैत्र मास की पूर्णिमा पर साल वृक्ष के नीचे किया जाता है ।
- यह एक सामूहिक नृत्य है जिसमें पुरुष विशेषकर पीला साफा बनते हैं और महिलाएं अपने जुड़े पर बगुले कलगी भी लगाती हैं ।
- इसमें भी किसी वाद्य यंत्र का प्रयोग नहीं होता बल्कि गीतों की ताल पर होता है।
भगोरिया नृत्य
- मध्यप्रदेश के झाबुआ ,अलीराजपुर क्षेत्र में भीलो द्वारा किया जाता है।
- उनका लोकप्रिय नृत्य है यह नित्य भगोरिया हाट एवं होली के अवसर पर युवा युवतियों द्वारा किया जाता है।
- भगोरिया हाट का आयोजन फाल्गुन मास में होली के पूर्व किया जाता है ।
- भगोरिया हाट केवल हाट ना होकर युवक-युवतियों के मिलन मेला होता है यह यहां युवक -युवतियों एक दूसरे के संपर्क में आते हैं और अपने जीवनसाथी को चुनते हैं और भाग जाते हैं इसलिए इसका नाम भगोरिया पड़ा।(bhagoriya haat lasts for total 7 days )
- रंग-बिरंगी वेशभूषा में सजे तीर कमान लिए हुए सामूहिक नृत्य किया जाता है ।इस समय भीलो को देखने में अलौकिक एहसास होता है ।
गैंडी नृत्य
- यह मुरिया आदिवासी द्वारा किया जाता है।
- डिटोग पाटा भी कहते हैं यह लकड़ी की गैंडी पर किया जाता है।
- कला की दृष्टि से यह घोटुल प्रथा का प्रमुख नृत्य है ।
- इसमें स्त्रियां भाग नहीं लेती हैं ।
माओपाटा नृत्य
- यह मुरिया जनजाति द्वारा किया जाता है।
- यह एक शिकार नाटिका है जिसमें शिकार करने की नकल की जाती है।
चटकोरा नृत्य
- यह बैतूल, होशंगाबाद ,भोपाल व सीहोर क्षेत्र में रहने वाली कोरकू जनजाति द्वारा किया जाता है।
- स्त्री पुरुष दोनों अलग-अलग समूह में भाग लेते हैं यह स्वागत गीत नृत्य है, जब लड़की की बारात आती है तो उसे वधू पक्ष वाले गांव के बाहर चटकोरा नृत्य करते हुए गांव तक लाते हैं ढोलक, मंजीरा बजाए जाता है ।
- चूड़ी व कडों की आवाज पर नृत्य किया जाता है।