अरविंद घोष का राष्ट्रवाद संबंधी विचार
Mppsc Mains GS 4 Ehics-Thinkers
राष्ट्रवाद की नई व्याख्या
अरविंदो ने राष्ट्रवाद को एक नया रूप प्रदान किया पर भारत को केवल एक भौगोलिक इकाई अथवा देश नही मानते थे बल्कि वह भारत को एक दिव्य रूप (मां) के रूप में देखते थे, वे कहते थे कि भारत पराधीन है अर्थात मां पराधीन है, इसको स्वतंत्र कराना हमारा धर्म है।
राष्ट्रवाद का आध्यात्मिक स्वरूप
अरविंदो ने राष्ट्रवाद को एक सक्रिय धर्म माना तथा इसकी प्राप्ति का प्रधान हथियार अध्यात्म बताया । यह राष्ट्रवादी का आंदोलन नहीं यह धर्म है, और उसे उसी तरह अर्थात अध्यात्म से प्राप्त करना होगा । उन्होंने राष्ट्रवाद को ईश्वर प्रदत्त माना ।इस तरह अरविंद ने राष्ट्रवाद को आध्यात्मिक रूप दिया।
अंतर्राष्ट्रवाद एवं राष्ट्रवाद
राष्ट्रवाद के साथ-साथ अरविंदो अंतर्राष्ट्रवाद में भी विश्वास रखते थे प्रत्येक राज्य को स्वतंत्र होना चाहिए विश्व समुदाय में निर्माणक भूमिका अवसर मिलना चाहिए, उन्होने यूएनओ के अस्तित्व में आने से पहले ही एक विश्व समुदाय एवं विश्व राज की कल्पना कर ली थी अरविंदो की राष्ट्रवाद में अंतर राष्ट्रवाद एवं मानवता समाहित थी।
राष्ट्रवाद का उदय
अरविंदों का कहना है कि राष्ट्र का उदय अचानक नहीं होता इसके लिए विशेष सभ्यता व सम्मान सांस्कृतिक संस्कृति अनिवार्य होती है, सामान्य विचारों के लोग मिलकर एक वृहद ढांचा बनाते हैं जिससे नियम संहिता विकसित हो जाती है और राजनीतिक एकता का जन्म होता है।
राष्ट्रवाद का उद्देश्य
श्री अरविंदो का राष्ट्रवाद देशवासियों को जागृत करने का अभियान था देशवासी देश की संस्कृति पर गर्व करें परतंत्रता की बेड़ियों को तोड़कर सर्वांगीण उन्नति करें और यही अरविंदो के राष्ट्रवाद का आवाहन था।
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This article is compiled by Sarvesh Nagar (NET/JRF).
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