अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ब्रेटन वुड्स समझौते 1944 के अंतर्गत 27 दिसंबर 1945 को स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक संगठन है जिसका उद्देश्य अल्पकालिक ऋण देकर प्रतिकूल भुगतान संतुलन वाले देशों कि मदद कर मौद्रिक स्थिरता को बनाए रखना है।
उद्देश्य
- अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग को बढ़ावा देना
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संतुलित विकास को बढ़ावा
- प्रतिकूल भुगतान संतुलन की समस्या के समय आर्थिक मदद
- अंतर्राष्ट्रीय पूंजी प्रवाह को प्रबंधित कर विनिमय दर को बनाए रखना
- प्रतिकूल भुगतान संतुलन की स्थिति में बहुपक्षीय सहयोग की व्यवस्था करना
- विश्व में गरीबी निवारण के लिए प्रयास करना
- धन शोधन तथा आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने हेतु अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के मध्य सहयोग करना
- सभी सदस्य देशों के मध्य आर्थिक विकास हेतु अंतरराष्ट्रीय व्यापार को सुविधाजनक बनाना
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रशासनिक संरचना
गवर्नर मंडल
- यह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की सर्वोच्च न्यायिक संस्था है जिसमें इसके सभी 190 सदस्यों का प्रतिनिधित्व होता है।
बैठक एवं चर्चाएं
- आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक की बैठक वर्ष में एक बार होती है
- आईएमएफ के गवर्नर मंडल को सलाह देने वाली अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक एवं वित्तीय समिति(IMFC)की बैठक वर्ष में दो बार अप्रैल एवं सितंबर-अक्टूबर माह में की जाती है।
- आईएमएफ की अधिकांश शक्तियों का प्रयोग गवर्नर मंडल करता है जैसे नए सदस्यों का प्रवेश, नए कानून बनाना, संशोधन करना, विशेष आहरण अधिकार(SDR) का आवंटन आदि।
कार्यकारी मंडल
- दिन प्रतिदिन के कार्यकलापों को देखता है इसमें कुल 24 कार्यकारी निदेशक होते हैं।
- इसमें सभी 190 देशों का प्रतिनिधित्व होता है।
गवर्नर मंडल को सलाह देने वाली मंत्रिमंडल की समितियां
- अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक एवं वित्तीय समिति
- विकास समिति
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की सदस्यता
- कोई भी संप्रभु राष्ट्र आईएमएफ की सदस्यता प्राप्त कर सकता है।
- आईएमएफ की सदस्यता प्राप्त होने पर देश को निर्दिष्ट कोटे के आधार पर आईएमएफ और उस देश के संबंध स्थापित होते हैं जिसमें अंशदान, मतदान शक्ति, तथा वित्त तक पहुंच शामिल है
- अंशदान आईएमएफ की सदस्यता का एक अनिवार्य भुगतान है
- किसी सदस्य देश को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से प्राप्त होने वाली आर्थिक संसाधनों का निर्धारण उस देश के निर्दिष्ट कोटे के माध्यम से किया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा ऋण की व्यवस्था
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष भुगतान संतुलन की समस्या से निपटने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करता है
- इसके के दो प्रकार होते हैं।
- गैर रियायती ऋण
- रियायती ऋण
विकासशील और विकसित देशों को भुगतान संतुलन की समस्या के समाधान हेतु अल्प और मध्यम अवधि के लिए गैर रियायती ऋण दिए जाते हैं
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ब्रेटन वुड्स समझौते 1944 के अंतर्गत 27 दिसंबर 1945 को स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक संगठन है जिसका उद्देश्य अल्पकालिक ऋण देकर प्रतिकूल भुगतान संतुलन वाले देशों कि मदद कर मौद्रिक स्थिरता को बनाए रखना है।
उद्देश्य
- अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग को बढ़ावा देना
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के संतुलित विकास को बढ़ावा
- प्रतिकूल भुगतान संतुलन की समस्या के समय आर्थिक मदद
- अंतर्राष्ट्रीय पूंजी प्रवाह को प्रबंधित कर विनिमय दर को बनाए रखना
- प्रतिकूल भुगतान संतुलन की स्थिति में बहुपक्षीय सहयोग की व्यवस्था करना
- विश्व में गरीबी निवारण के लिए प्रयास करना
- धन शोधन तथा आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने हेतु अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के मध्य सहयोग करना
- सभी सदस्य देशों के मध्य आर्थिक विकास हेतु अंतरराष्ट्रीय व्यापार को सुविधाजनक बनाना
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रशासनिक संरचना
गवर्नर मंडल
यह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की सर्वोच्च न्यायिक संस्था है जिसमें इसके सभी 190 सदस्यों का प्रतिनिधित्व होता है।
बैठक एवं चर्चाएं
आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक की बैठक वर्ष में एक बार होती है
आईएमएफ के गवर्नर मंडल को सलाह देने वाली अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक एवं वित्तीय समिति(IMFC)की बैठक वर्ष में दो बार अप्रैल एवं सितंबर-अक्टूबर माह में की जाती है।
आईएमएफ की अधिकांश शक्तियों का प्रयोग गवर्नर मंडल करता है जैसे नए सदस्यों का प्रवेश, नए कानून बनाना, संशोधन करना, विशेष आहरण अधिकार(SDR) का आवंटन आदि।
कार्यकारी मंडल
- दिन प्रतिदिन के कार्यकलापों को देखता है इसमें कुल 24 कार्यकारी निदेशक होते हैं।
- इसमें सभी 190 देशों का प्रतिनिधित्व होता है।
गवर्नर मंडल को सलाह देने वाली मंत्रिमंडल की समितियां
- अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक एवं वित्तीय समिति
- विकास समिति
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की सदस्यता
- कोई भी संप्रभु राष्ट्र आईएमएफ की सदस्यता प्राप्त कर सकता है।
- आईएमएफ की सदस्यता प्राप्त होने पर देश को निर्दिष्ट कोटे के आधार पर आईएमएफ और उस देश के संबंध स्थापित होते हैं जिसमें अंशदान, मतदान शक्ति, तथा वित्त तक पहुंच शामिल है
- अंशदान आईएमएफ की सदस्यता का एक अनिवार्य भुगतान है
- किसी सदस्य देश को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से प्राप्त होने वाली आर्थिक संसाधनों का निर्धारण उस देश के निर्दिष्ट कोटे के माध्यम से किया जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा ऋण की व्यवस्था
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष भुगतान संतुलन की समस्या से निपटने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करता है
इसके के दो प्रकार होते हैं।
- गैर रियायती ऋण
- रियायती ऋण
- विकासशील और विकसित देशों को भुगतान संतुलन की समस्या के समाधान हेतु अल्प और मध्यम अवधि के लिए गैर रियायती ऋण दिए जाते हैं
- अल्प विकसित देशों को भुगतान संतुलन की समस्या के समाधान हेतु तथा आर्थिक विकास के प्रोत्साहन हेतु रियायती ऋण दिए जाते हैं(ब्याज भुगतान से छूट केवल मूल राशि जमा)
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की रिपोर्ट
- विश्व आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट
- वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की सामान्यतः निर्देशित शर्तें
- राजकोषीय घाटे को कम करना
- सरकारी कर्मचारियों की संख्या कम करना
- निजीकरण को बढ़ावा
- फ्लोटिंग (नियंत्रण मुक्त )मुद्रा प्रणाली को अपनाना
- सब्सिडी में कटौती करना
शर्तों के पक्ष में तर्क एवं वितर्क
प्राप्तकर्ता देश(विपक्ष)
- सामाजिक एवं मानव विकास की प्रक्रिया में बाधक
- सभी देशों के लिए समान शर्तें चाहे समस्या अलग अलग हो।
आईएमएफ (पक्ष)
आर्थिक वृद्धि एवं विकास हेतु अनिवार्य है।
भारत एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
- भारत अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के संस्थापक सदस्यों में से एक है यह 27 दिसंबर 1945 को आईएमएफ में शामिल हुआ
- 1991-92 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा भारत को भुगतान संतुलन की समस्या के समाधान हेतु ऋण उपलब्ध कराया गया परंतु वर्तमान में भारत के वित्त पोषक राष्ट्र में शामिल है।
- वर्तमान में भारत का कोटा76% तथा वोटिंग शेयर 2.63% हो गया है भारत अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का आठवां सर्वाधिक कोटा धारक एवं वोटिंग शेयर वाला राष्ट्र है।
- 1991 के दौरान आईएमएफ के प्रभाव स्वरूप भारत में नई आर्थिक नीति लागू की गई।
- हालांकि भारत एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के संबंध मित्रवत है इसके बावजूद भारत अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के कोटा एवं प्रशासनिक सुधार हेतु लगातार मांग कर रहा है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में सुधार की मांग
आलोचना
- IMF पर अमेरिका और पश्चिमी देशों का प्रभुत्व।
- अमेरिका का अप्रत्यक्ष दबदबा।
- अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की कठोर और अनेक शर्तें
- अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रबंध निदेशक की नियुक्ति पश्चिमी यूरोपीय देशों से।
- भारत सहित कई विकासशील देशों को उनकी अर्थव्यवस्था के योगदान की तुलना में कम कोटा देना
- 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी का सटीक अनुमान लगाने में विफल।
- आईएमएफमैं सुधार हेतु 70% वोट चाहिए विकसित देशों की उदासीनता के कारण ब्रिक्स बैंक तथा एआईआईबी जैसे बैंक बनाए जा रहे हैं।
- अल्प विकसित देशों को भुगतान संतुलन की समस्या के समाधान हेतु तथा आर्थिक विकास के प्रोत्साहन हेतु रियायती ऋण दिए जाते हैं(ब्याज भुगतान से छूट केवल मूल राशि जमा)
This article is compiled by Sarvesh Nagar (NET JRF).
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